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Old 12-08-2012, 02:16 PM   #2
stolen heart
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stolen heart will become famous soon enough
Default Re: कुरआन और विज्ञान |

पवित्र क़ुरआन की चुनौती
तमाम संस्कृतियों में मानवीय शक्ति वचन और रचनात्मक क्षमताओं की अभिव्यक्ति के प्रमुख साधनों में साहित्य और शायरी (काव्य रचना) सर्वोरि है। विश्व इतिहास में ऐसा भी ज़माना गु़ज़रा है जब समाज में साहित्य और काव्य को वही स्थान प्राप्त था जो आज विज्ञान और तकनीक को प्राप्त है।
गै़र-मुस्लिम भाषा-वैज्ञानिकों की सहमति है कि अरबी साहित्य का श्रेष्ठ सर्वोत्तम नमूना पवित्र क़ुरआन है यानी इस ज़मीन पर अरबी सहित्य का सर्वोत्कृष्ठ उदाहरण क़ुरआन -ए पाक ही है। मानव जाति को पवित्र क़ुरआन की चुनौति है कि इन क़ुरआनी आयतों (वाक्यों ) के समान कुछ बनाकर दिखाए उसकी चुनौती है :
‘‘और अगर तुम्हें इस मामले में संदेह हो कि यह किताब जो हम ने अपने बंदों पर उतारी है, यह हमारी है या नहीं तो इसकी तरह एक ही सूरत (क़ुरआनी आयत) बना लाओ, अपने सारे साथियों को बुला लो एक अल्लाह को छोड़ कर शेष जिस - जिस की चाहो सहायता ले लो, अगर तुम सच्चे हो तो यह काम कर दिखाओ, लेकिन अगर तुमने ऐसा नहीं किया और यकी़नन कभी नहीं कर सकते, तो डरो उस आग से जिसका ईधन बनेंगे इंसान और पत्थर। जो तैयार की गई है मुनकरीन हक़ (सत्य को नकारने वालों)के लिये ( अल - क़ुरआन: सूर 2, आयत 23 से 24 )
पवित्र क़ुरआन स्पष्ट शब्दों में सम्पूर्ण मानवजाति को चुनौती दे रहा है कि वह ऐसी ही एक सूरः बना कर तो दिखाए जैसी कि क़ुरआन में कई स्थानों पर दर्ज है । सिर्फ एक ही ऐसी सुरः बनाने की चुनौति जो अपने भाषा सौन्दर्य मृदुभषिता, अर्थ की व्यापकता औ चिंतन की गहराई में पवित्र क़ुरआन की बराबरी कर सके, आज तक पूरी नहीं की जा सकी ।
यद्यपि आधुनिक युग का तटस्थ व्यक्ति भी ऐसे किसी धार्मिक ग्रंथ को स्वीकार नहीं करेगा जो अच्छी साहित्यिक व काव्यात्मक भाषा का उपयोग करने के बावजूद यह कहता हो कि धरती चप्टी है। यह इस लिये है कि हम एक ऐसे युग में जी रहे हैं जहां इंसान के बौद्धिक तर्क और विज्ञान को आधारभूत हैसियत हासिल है। बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो अल्लाह द्वारा पवित्र क़ुरआन के अस्तित्व की प्रामाणिकता में उसकी असाधारण और सर्वोत्तम साहित्यिक भाषा को पर्याप्त प्रमाण नहीं मानेंगे । कोई भी ऐसा ग्रंथ जो आसमानी होने और अल्लाह द्वारा प्रदत्त होने का दावेदार हो, उसे अपने प्रासंगिक तर्कों की दृढ़ता के आधार पर ही स्वीकृति के योग्य होना चाहिये ।
प्रसिद्ध भौतिकवादी दर्शनशास्त्री और नोबल पुरस्कार प्राप्त वैज्ञानिक अल्बर्ट आइन्स्टाइन के अनुसार ‘‘धर्म के बिना विज्ञान लंगड़ा है और धर्म के बिना विज्ञान अंधा है ‘‘इसलिये अब हम पवित्र क़ुरआन का अध्ययन करते हुए यह जानने का प्रयत्न करते हैं कि आधुनिक विज्ञान और पवित्र क़ुरआन में परस्पर अनुकूलता है या प्रतिकूलता ?
यहां याद रखना ज़रूरी है कि पवित्र क़ुरआन कोई वैज्ञानिक किताब नहीं है बल्कि यह ‘‘निशानियों‘‘ (signs) की, यानि आयात की किताब है। पवित्र क़ुरआन में छह हज़ार से अधिक ‘‘निशानियां‘‘ (आयतें / वाक्य) हैं, जिनमें एक हज़ार से अधिक वाक्य विशिष्ट रूप से विज्ञान एवं वैज्ञानिक विषयों पर बहस करती हैं । हम जानते हैं कि कई अवसरों पर विज्ञान‘‘ यू टर्न ‘‘लेता है यानि विगत - विचार के प्रतिकूल बात कहने लगता है । अत: यहां केवल सर्वमान्य वैज्ञानिक वास्तविकताओं को ही चुना है जबकि ऐसे विचारों व दृष्टिकोण पर बात नहीं की है जो महज़ कल्पना हो और पुष्टि के लिये वैज्ञानिक प्रमाण न हो।
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