Re: अन्ताक्षरी(मुहावरे और दोहे)
करता दीसै कीरतन, ऊँचा करि-करि तुंड
जानें-बूझै कुछ नहीं, यौंहीं आंधां रूंड
अर्थ :-- हमने देखा ऐसों को, जो मुख को ऊँचा करके जोर-जोर से कीर्तन करते हैं । जानते-समझते तो वे कुछ भी नहीं कि क्या तो सार है और क्या असार । उन्हें अन्धा कहा जाय, या कि बिना सिर का केवल रुण्ड ?
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