Re: किस्सा तीन बहनों का
किस्सा तीन बहनों का
अपनी कुशलता की सूचना देने के लिए जो खंजर बहमन ने परीजाद को दिया था वह उसे रोजाना म्यान से निकल कर देखती। जिस दिन बहमन काला पत्थर बना उस दिन परवेज ने कहा, परीजाद, आज मुझे खंजर दो। आज भैया का हाल मैं मालूम करना चाहता हूँ। परीजाद ने उसे खंजर दे दिया। उसने म्यान से उसे निकाला तो उसकी नोक से उसे खून की बूँद निकलती दिखाई दी। परवेज ने हाथ से खंजर फेंक दिया और हाय-हाय करने लगा।
परीजाद को भी जब खून टपकाता हुआ खंजर दिखाई दिया तो वह चिल्ला-चिल्ला कर रोने लगी और सिर पटक-पटक कर कहने लगी, हाय भैया, मेरी नादानी से तुम्हारी जान गई। न जाने किस मनहूस घड़ी में वह कमबख्त बुढ़िया आई थी। न वह आती न यह झंझट होता। मक्कार ने मुझे बेकार के लालच में डाल दिया। मैंने उसके साथ ऐसा सद्व्यवहार किया और उसने मुझे इसका ऐसा बदला दिया। अब मिले तो उस कलमुँही की बोटियाँ नोच लूँ। मेरे प्यारे भाई की जान उसी के दिलाए लालच के कारण गई। हे भगवान, तू भैया को जिंदा घर लौटा, चाहे मेरी मौत भेज दे। भैया न रहे तो चिड़िया, पेड़ और पानी को पा कर भी मैं क्या करूँगी। मुझे यह चीजें नहीं चाहिए, मुझे और भी कुछ नहीं चाहिए। मुझे सिर्फ मेरा भाई चाहिए।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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