Re: किस्सा तीन बहनों का
किस्सा तीन बहनों का
सिद्ध ने मुस्कुरा कर कहा, बेटी, मालूम होता है कि तुम्हारे ही भाग्य में है। इतने लोग वहाँ गए हैं किंतु यह उपाय किसी को अभी तक नहीं सूझा। बस, सब कुछ इस पर निर्भर है कि चाहे जो कुछ सुनाई दे आदमी उसका असर अपने मन पर न पड़ने दे। परीजाद ने कहा, विश्वास रखिए कि मैं आपकी दी हुई सलाह पूरी तरह मानूँगी। अब आप यह बता दीजिए कि पहाड़ को कौन-सा रास्ता जाता है। बूढ़े तपस्वी ने कहा, बेटी, तुम होशियार तो बहुत मालूम होती हो लेकिन मैं एक बार फिर तुम्हें सलाह दूँगा कि घर लौट जाओ।
परीजाद आगे जाने की जिद पर अड़ी रही तो वृद्ध ने मजबूर हो कर अन्य लोगों की भाँति उसे भी मार्ग प्रदर्शन करनेवाली गेंद दी और कहा, इसे भूमि पर डाल दो। यह अपने आप लुढ़कती हुई पहाड़ के नीचे जा कर रुक जाएगी। तुम वहीं घोड़े से उतरना और पहाड़ पर चढ़ना शुरू कर देना। परीजाद ने ऐसा ही किया और तेजी से लुढ़कती हुई गेंद के पीछे घोड़ा दौड़ाने लगी।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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