Re: किस्सा तीन बहनों का
किस्सा तीन बहनों का
दूसरे दिन शिकारगाह में बादशाह ने उनसे पूछा कि आज तुमने अपनी बहन से पूछा या आज भी भूल गए। बहमन ने कहा, हम आपकी आज्ञा से बाहर नहीं हो सकते। हमने उससे पूछा तो उसने हमें आपका निमंत्रण स्वीकार करने की सलाह दी। इसके अलावा उसने हमें बुरा-भला भी कहा कि हम दो दिन तक यह क्यों भूले रहे।
बादशाह ने कहा, इसकी कोई बात नहीं है। तुम दो दिनों तक मेरी बात भूले रहे इसकी मुझे कोई नाराजगी नहीं है। दोनों भाई यह सुन कर बड़े लज्जित हुए कि बादशाह हम पर इतना कृपालु है और हम उसके प्रति इतने लापरवाह हैं। वे लज्जा के मारे बादशाह से दूर-दूर ही रहे। बादशाह ने यह देखा तो उन्हें पास बुला कर उन्हें आश्वासन दिया कि ऐसी छोटी-मोटी भूलों का मैं खयाल नहीं किया करता और मैं तुम लोगों से बिल्कुल नाराज नहीं हूँ। फिर उसने शिकार खत्म किया और महल को वापस हुआ। उसके साथ बहमन और परवेज भी थे। बादशाह ने इन दोनों की ऐसी अभ्यर्थना की कि उससे कई दरबारियों और सरदारों को ईर्ष्या होने लगी कि इन अजनबियों के प्रति बादशाह इतना कृपालु क्यों है।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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