View Single Post
Old 24-11-2010, 10:47 PM   #15
aksh
Special Member
 
aksh's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Posts: 3,421
Rep Power: 32
aksh has a brilliant futureaksh has a brilliant futureaksh has a brilliant futureaksh has a brilliant futureaksh has a brilliant futureaksh has a brilliant futureaksh has a brilliant futureaksh has a brilliant futureaksh has a brilliant futureaksh has a brilliant futureaksh has a brilliant future
Default Re: प्राउड टू बी हिन्दुस्तानी PROUD 2 B an Indian

अपनी मां को गाली देने से मुश्किल कोई अन्य काम नहीं है अगर आप सचमुच में उसे मां मानते हो और मां को गाली देने से ज्यादा कोई आसान काम भी नहीं है क्योंकि पता है की मां कुछ कहने वाली नहीं है.

मैंने किसी जापानी, किसी जर्मन, किसी रूसी या किसी अमरीकन को अपने देश की बुराई करते हुए नहीं सुना है. पर भारत के लोग कुछ भी कर सकते हैं. मैं एक सच्ची घटना सुनाना चाहता हूँ.

"मैं हाथरस का रहने वाला हूँ और दिल्ली में अपना काम होने की वजह से वीकली हाथरस से दिल्ली आता जाता था. और अक्सर अलीगढ स्टेशन से मैं ट्रेन लिया करता था. उस ट्रेन से ज्यादातर लोग वही जाया करते हैं जिनको दिल्ली नौकरी करने या काम के सिलसिले में सुबह जाकर शाम को लौट आना होता है. ट्रेन कर किराया काफी कम था और सरकार ने सुबह सुबह ही करीब तीन या चार ट्रेन उस समय चला रखी थीं. किराया भी कम था और mst (मंथली सीजन टिकट) वाले लोगों को और भी कम पड़ता था. मैं हमेशा की तरह अपने आप में मस्त चाय की चुस्कियां, अख़बार और मूंगफली के मजे लेता हुआ जा रहा था कि तभी मेरे कानों में दो लड़कों का वार्तालाप पड़ा जो "इस देश में कुछ नहीं रखा है", "मैं तो कहीं भी बाहर चला जाऊंगा", "यहाँ पर कुछ भी ठीक नहीं है", यहाँ पर सब कुछ बेकार है" जैसे जुमले बार निकाल रहे थे. मैं सब कुछ जैसे तैसे बर्दाश्त ही कर रहा था और उनके इस वार्तालाप में कूदने से अपने आप को रोके हुए था. तभी डब्बे में कुछ अफरा तफरी सी मची और मैंने देखा कि वो दोनों लड़के उठ कर गेट की तरफ जाने लगे पर टिकट चैकर के हत्थे चढ़ ही गए. और उन दोनों के पास ही टिकट नहीं था."

मुझे ये घटना ने अन्दर तक झकझोर दिया कि अभी कुछ देर तर सिस्टम को कोसने वाले ये दोनों लड़के जो ट्रेन में सुविधाओं की कमी का बखान भी कर रहे थे. ट्रेन की मामूली कीमत की टिकट खरीदने के अपने फर्ज से अनजान कितनी बड़ी बड़ी गालियाँ इस सिस्टम को दे रहे थे. बाहर की तारीफ करने वाले ये लड़के अगर बाहर जाते भी तो वहां पर पूरा टिकट लेते और वहां के क़ानून और सिस्टम को सहयोग करते, पर यहाँ पर सिस्टम को कोसने के अलावा कुछ काम ही नहीं है.

अपने मुंह से ये शब्द निकलने से पहले कि " देश ने मेरे लिए किया ही क्या है? " ये सोच लेना चाहिए कि "मैंने इस देश के लिए क्या किया है ?"

मैं भारत में ही पला बढ़ा और भारत में ही काम कर रहा हूँ. आज तक मन में ये नहीं आया कि बाहर जाकर कुछ काम करूं. ( जो लोग बाहर जाकर काम करते हैं उनके प्रति कोई दुर्भावना नहीं है क्योकि उनमें से भी ज्यादातर लोग अपने देश का पूरा ख्याल वहां रहकर भी करते हैं ). मुझे भारत में बहुत संभावनाएं नजर आतीं हैं और मुझे भी हर सच्चे भारतवासी की तरह अपने देश से बेइंतहा मोहब्बत हैं, प्यार है.






__________________

Last edited by aksh; 24-11-2010 at 10:55 PM.
aksh is offline   Reply With Quote