Re: क्या ये मेरा गुनाह है?
आज जब जब कोई समाचार पत्र ये खबर देता है की दंगों की वजह से हजारो जाने गई, कई लोग मौत के घाट उतारे गए देख्न सुनकर के दिल दहल जाता है और एक ख़याल आता है मन में की हममे ताकत है की हम एक इंसान बनाये? फिर जिन्हें हम आपना सर्वोपरि मानते हैं उनकी मेहनत को क्यों अनंत की आगोश में भेज देते हैं. इंसानी करुना का अंत हो रहा है आज बेवजह कई घर बर्बाद हो रहे हैं कई बच्चे अनाथ और कई माँ बाप बेऔलाद हो रहे हैं आखिर क्यूँ ?? आखिर क्यों ??? जबकि सर्वोच्च सत्ता तो सिर्फ एक है भले ही हम इंसानों ने उनके नाम अलग अलग रख दिए . उस दर्द को काश आत्मदाह करके दूसरों का जीवन लेने वाले समझ सकते/// काश इंसानों में सिर्फ इंसानियत रहती/// काश हमने दुनिया का सिर्फ एक धर्म रखा होता और वो धर्म होता सिर्फ और सिर्फ इंसानियत का तो आज कोई बच्चा अनाथ न होता कोई माँ बाप बेऔलाद न होते कोई औरत बेवा न होती किसी का घर न उजड़ता ..
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