Re: ज़ोरॉस्ट्रा या ज़रथुस्त्र
मनुष्य, जो कि अहुरा मजदा की सर्वश्रेष्ठ कृति है, की इस संघर्ष में केन्द्रीय भूमिका है। उसे स्वेच्छा से इस संघर्ष में बुरी आत्मा से लोहा लेना है। इस युद्ध में उसके अस्त्र होंगे अच्छाई, सत्य, शक्ति, भक्ति, आदर्श एवं अमरत्व। इन सिद्धांतों पर अमल कर मानव अंततः विश्व की तमाम बुराई को समाप्त कर देगा।
पैगंबर जरथुस्त्र के उपदेशों के अनुसार विश्व एक नैतिक व्यवस्था है। इस व्यवस्था को स्वयं को कायम ही नहीं रखना है, बल्कि अपना विकास तथा संवर्द्धन भी करना है। जरथोस्ती धर्म में जड़ता की अनुमति नहीं है।
विकास की प्रक्रिया में बुरी ताकतें बाधा पहुँचाती हैं, परंतु मनुष्य को इससे विचलित नहीं होना है। उसे सदाचार के पथ कर कायम रहते हुए सदा विकास की दिशा में बढ़ते रहना है।
जीवन के प्रत्येक क्षण का एक निश्चित उद्देश्य है। यह कोई अनायास शुरू होकर अनायास ही समाप्त हो जाने वाली चीज नहीं है। सब कुछ ईश्वर की योजना के अनुसार होता है।
सर्वोच्च अच्छाई ही हमारे जीवन का उद्देश्य होना चाहिए। मनुष्य को अच्छाई से, अच्छाई द्वारा, अच्छाई के लिए जीना है।
जरथोस्ती धर्म में मठवाद, ब्रह्मचर्य, व्रत-उपवास, आत्म दमन आदि की मनाही है। ऐसा माना गया है कि इनसे मनुष्य कमजोर होता है और बुराई से लड़ने की उसकी ताकत कम हो जाती है।
निराशावाद व अवसाद को तो पाप का दर्जा दिया गया है। जरथुस्त्र चाहते हैं कि मानव इस विश्व का पूरा आनंद उठाए, खुश रहे। वह जो भी करे, बस एक बात का ख्याल अवश्य रखे और वह यह कि सदाचार के मार्ग से कभी विचलित न हो।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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