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Old 13-12-2012, 08:55 PM   #2
malethia
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Default Re: ख़लते , जब खाली पैमाने हो जाते हैं .

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Originally Posted by dr. Rakesh srivastava View Post
ख़ुश्बू पा भौंरे मस्ताने हो जाते हैं ; नये फूल के कई दीवाने हो जाते हैं .
प्यार के क़ारोबार भले ही छुप - छुप चलते ; दूर तलक लेकिन अफ़साने हो जाते हैं .

आख़िर कितनी बार पढ़े - दोहराये कोई ; जल्दी ही अखबार पुराने हो जाते हैं .
रहें छलकते , मन को तब तक अच्छे लगते ; ख़लते , जब खाली पैमाने हो जाते हैं .

लेन - देन में समता तक ही बंधे हुए सब ; वरना रिश्तेदार बेगाने हो जाते हैं .
जीवन में ऐसे भी अवसर आ जाते हैं ; आँखों में हर ओर वीराने हो जाते हैं .

अज़ब बेबसी , वो दिल में ही बसते , फिर भी ; उनको देखे हुए ज़माने हो जाते हैं .
दिल के ज़ख्म सलीके से ग़र सीख लें रिसना ; ग़ज़लों के अनमोल ख़ज़ाने हो जाते हैं .

पाल - पोस कर बड़ा किया , उनसे ही झुकते ; जिनके बच्चे अधिक सयाने हो जाते हैं .
जैसा हम पुरखों - संग बोते , वही काटते ; एक लगाओ , सौ - सौ दाने हो जाते हैं .

जब - जब जो किस्मत में होता , होकर रहता ; अज़ब - गज़ब हर बार बहाने हो जाते हैं .हूँ

कभी - कभी तो वक्त लगाता ऐसी ठोकर ; अच्छे - अच्छे मर्द जनाने हो जाते हैं .


रचयिता ~~ डॉ . राकेश श्रीवास्तव
विनय खण्ड - 2 , गोमती नगर , लखनऊ .
जिन्दगी की कडवी सच्चाई को बयाँ करती ये चार पंक्ति दिल को छू गयी !
शानदार प्रस्तुती के लिए एक बार फिर से आभार ,डॉ . साहेब !
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