Re: लौह-ओ-कलम (स्याही और कलम)
अब एक गीत
सन् 1966 में बनी फिल्म "सुशीला" का निम्नलिखित गीत जां निसार अख्तर साहब का लिखा हुआ है जिसे कर्णप्रिय धुन से संवारा है सी. अर्जुन ने और जिसे स्वर दिया तलत महमूद और मुहम्मद रफ़ी ने:-
ग़म की अंधेरी रात मेंदिल को ना बेक़रार कर
सुबह ज़रूर आयेगीसुबह का इन्तज़ार कर
ग़म की अंधेरी रात में .....
दर्द है सारी ज़िन्दगीजिसका कोई सिला नहीं
दिल को फ़रेब दीजियेऔर ये हौसला नहीं
खुद से तो बदग़ुमाँ ना होखुद पे तो ऐतबार कर
सुबह ज़रूर आयेगीसुबह का इन्तज़ार कर
ग़म की अन्धेरी रात में.....
खुद ही तड़प के रह गयेदिल कि सदा से क्या मिला
आग से खेलते रहेहम को वफ़ा से क्या मिला
दिल की लगी बुझा ना देदिल की लगी से प्यार कर
सुबह ज़रूर आयेगीसुबह का इन्तज़ार कर
ग़म की अंधेरी रात में .....
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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