दुनिया
ये दुनिया है बेईमानी सी,
सो लगती जानीमानी सी ।
यह पहले तो रुमानी थी,
अब भी तो है दिवानी सी!
उपर से शोर मचाती है,
अंदर भी है तुफानी सी ।
यहां सबकी एक कहानी है,
खुद भी एक कहानी सी !
रंग एसे बदलती रहती है,
आदत हो जैसे पुरानी सी ।
जब हम ही आते-जाते है,
क्युं यह लगती है फानी सी ?
बेशर्म हुए जब से ईन्सान,
यह हो गई पानी-पानी सी !
है कैसी हमें न बतलाओ,
हमको है दुनिया ज़ुबानी सी ।
[31.5.16]