Re: भाभी जी घर पर है .
तो भैया उधर नवरात्री ख़तम और इधर विजय दशमी की तैयारिया शुरू. अंगूरी भाभी और अनीता भाभी दोनों अपने घर के सामने एक दुसरे से बाते कर रही है भगवान् श्री राम और उनके गुणों के विषय में, उन्हें कही न कही ये भी लगता है की उनके पतियों में भगवान् श्री राम की छवि है. पर अफ़सोस की ज्यादा बाल की खाल निकलने के बाद अंगूरी भाभी को विभूति नारायण तो आसली और सुत्क्कड़ कुम्भ कारन लगने लगते है और अनीता भाभी को तिवारी जी तो रावण ही लगने लगते है.
अफ़सोस की ये चर्चा दिवार के पीछे से तिवारी और विभूति सुन लेते है. अब उनकी मनपसंद भाभिया उन्हें ऐसा कहे ये उन्हें कहा हजम होगा. दोनों ठान लेते है की वे मर्यादा पुरषोत्तम श्री राम के आदर्शो पे चल के अपने भाभी जी को रिझएंगे. भले दो दिन के लिए ही सही.
तो भैया अब दोनों में मच जाती है होड़, भगवन राम बन्ने की. हालाँकि दोनों मानते है की भगवान् राम के आदर्शो पे चल पाना आज के ज़माने में संभव नहीं, पर फिर भी कोशिश किया जाए. तो इसी मुहीम में तिवारी जी शुरुआत करते है अपने घर से, अंगूरी भाभी उन्हें खाने पर बुलाती है की लाड्डो के भैया आ जाइये खाना लग गया है की तभी तिवारी जी गिरगिट की तरह अपना रंग बदलते है. लगते है शुद्ध अवधी में बाते करने, दया और प्रेम का प्रवचन सुनाने. यहाँ तक की उन्होंने अंगूरी को भी अंगुरे कह कर पुकारा भाई. भाभी जी अचंभित की लड्डू के भैया को ये क्या हो गया अचानक. इतने में ही तिवारी जी फैसला करते है की आज के दिन से वे रोज एक समय का भोजन नहीं करेंगे और वह भोजन वो गरीबो को खिलाएँगे. तो वे थाली को सात्त्विक स्टाइल में दोनों हाथो में थामे चल देते है घर से बाहर किसी भूखे को खोजने .
अब अंगूरी भाभी को ये सब हजम नहीं हो रहा . वे लगाती है अम्मा जी को फ़ोन और बताती है सब कुछ, पहले बता दू ये अम्मा जी तिवारी जी की माँ यानि अंगूरी जी की सास है पर वे अंगूरी भाभी को तिवारी से ज्यादा मानती है. क्युकी जानती है की उलटे सीधे काम तिवारी ही ज्यादा करते है अंगूरी नहीं. वो बिचारी भोली भली है . अम्मा जी भी ये बर्ताव सुन के हैरान होती है सोचती है की ये बैलवा को अचानक क्या हो गया. पर फिर कहती है की जाने दो बेटा अच्चा बर्ताव ही कर रहा है न कोई परेशां तो नहीं न कर रहा , परेशां करे तब बताना हम आके उसकी बैंड बजा देंगे .
इधर तिवारी जी हाथो के खाने की थाल सजा के इंतजार कर रहे है किसी भूखे का, अनीता भाभी उन्हें अपने घर से ताक रही है. आश्चर्य से पूछती है की क्या भाई तिवारी जी ये आप को क्या हो गया. बस फिर क्या इसी पल के लिए तो तिवारी ने ये सारा ड्रामा रचा था. वे बतलाते है की किस तरह उनके ह्रदय में परिवर्तन आ चूका है और वे एक भूखे को खोज रहे है जिसे वे खाना खिला सके . पर अफ़सोस की रोज सैकड़ो भिखारी घूमते टहलते दीखते थे आज कम्बखत एक भी नहीं दिख रहा, कही भिखारियों की हड़ताल तो नहीं हो गई. अगर ऐसा हुआ तो वे भाभी जी को इम्प्रेस कैसे करेंगे ?
इतने में तभी टिका और मलखान गुजरते है, लो भाई आ गए तिवारी जी भिखारी. तिवारी जी बड़े प्रेम से खाने की थाल उनके आगे कर देते है, पर टिके मलखान को इसकी जरूरत कोणी . वे तो अभी कही से मुर्गी और १०-१० रोटियां पेल के आ रहे है. हा अगर ४-५ सौ रूपए हो तो तिवारी जी वे दे दे . ले भाई ये है आज कल की दुनिया खैर .
वे दोनों तो आगे निकल जाते है पीछे भोला रिक्शे वाला आता है, अरे वही जो बाते कम करता है और पर्चियों से जवाब ज्यादा देता है. न जाने उसे कैसे पता रहता है की सामने वाला क्या सवाल पूछेगा और उसके जवाब की पर्ची उसके पास तैयार रहती है. तिवारी जी उससे कहते की ले भोला खाना खा ले. जवाब में भोला पर्ची निकल ता है उसमे लिखा होता है " किस ख़ुशी में " तिवारी जी कहते है अरे पगले कोई ख़ुशी की बात नहीं तुझे भूख लगी होगी इस लिए खिला रहा हु , भोला जवाब में पर्ची निकलता है " की मुझे तो न लागी, मई तो अभी खाके आ रहा हु, हा अगर इतना ही एहसान करना है तो एक ऑटो रिक्शा दिलवा दो" हा हा हा हा लो भाई ऐसी है दुनिया, तिवारी जी के खाने को किसी की जरूरत न है और उनकी बेज़ती पे बेज़ती होती जा रही है . अनीता भाभी काफी देर से ये सब देख रही है, वे तिवारी जी को सलाह देती है की आप ये खाना अनाथ आश्रम में दान कर आइये, यहाँ तो आपके खाने की किसी को जरूरत नहीं, वे कहती है की मई आपको अनाथ आश्रम का नंबर देती हु, और नंबर देने के लिए वे आगे बढती ही है की उनका पाँव फिसल जाता है और वे सड़क पर गिर जाती है , उनके पाँव में मोच आ जाती है, वे तिवारी जी को कहती है की उनकी मदद करे . पर अफ़सोस की तिवारी जी तो राम बने है, वे कहते है माफ़ करे देवी पराई स्त्री का स्पर्श वे नहीं कर सकते और वे दिवार के पीछे चुप जाते है साथ ही हाथ भी पटकते है की राम बन्ने के चक्कर में भाभी जी को चुने का इतना अच्चा मौका हाथ से निकल गया . उधर सड़क पे पड़े पड़े भाभी जी हैरान है की ये क्या किया तिवारी जी ने ये कैसा आदमी है, और तिवारी जी हाथ पटकते भाग निकलते है .
उधर विभूति जी अपने ही कोशिश में लगे है की कैसे श्री राम बना जाए . इस मुहीम में वे फूल वाली के दिकन पर खड़े कुछ सोचते रहते है, की फूल वाली उन्हें टोकती है की क्या बात है विभूति बाबु कौन से फूल चाहिए. विभूति जी भी मर्यादा का चोला पहने है, वे फूल वाली को देवी कह कर संबोधित करते है. फूल वाली गरम हो जाती है की ये क्या देवी देवी लगा रखा है और दुसरे को दुकान देखने को कहके चली जाती है, इतने में टिका और मलखान वहा पहुचते है . विभूति जी उन्हें रोकते है और कहते की उनका एक काम करोगे तो वे ५०० रूपए देंगे दोनों को , दोनों पूछते की क्या बात है ऐसा कोण सा काम आ गयो की उसके लिए ५०० देने को तैयार है विभूति भैया . वे कहते है की शाम को इस फूल वाली को छेड़ना है . दोनों कहते है की जे कोई काम थोड़े है हमारे लिए ये तो एंजोयमेंट है, इसके भला ५०० क्यों देगा कोई . फॉर कहते है की अगर हप्पुर सिंह आ गया उर हमें पकड़ लिया तो क्या होगा. विभूति समझाते है की उसकी नौबत न आएगी उससे पहले ही मई तुम लोगो को सूत दूंगा, अब विभूति की साडी चाल समझ आई दोनों को. खैर, दोनों तैयार हो जाते है पर २००० मांगते है. बीच में आके बात पट्टी है १५०० पर. अब आज देखे की विभूति की ये चाल क्या कारनामे करती है .
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