Re: मेरी ज़िंदगी : मेरे शहर
लगभग तीन दशक के बाद, जब मैं कुछ अरसा पहले वहाँ फिर गया तो मैंने देखा कि श्री रावत मल पारख की जिस हवेली में मैं सन १९७८ तक रहा था उसके बाहरी जालीदार दरवाजे और ऊपर चढ़ती सीढ़ियों के बीचोंबीच पीपल का एक पेड़ उग आया था जिसका भरा पूरा तना देख कर मालूम पड़ता था कि पिछले तीस वर्षों से वहाँ किसी व्यक्ति ने कदम नहीं रखा.
चूरू शहर की प्रमुख और पुरानी हवेलियों में से माल जी का कमरा (जिसके दालान में इतालवी स्थापत्य कला के स्तम्भ और मूर्तिकला के दर्शन होते हैं यद्यपि इनमे काफी टूट फूट हो चुकी है), सुराणा हवा महल (इसका यह नाम कई मालों पर लगी इसकी सैकड़ों, शायद ११००, खिड़कियों के कारण पड़ा), कन्हैया लाल बागला की हवेली, बांठिया हवेली, जय दयाल खेमका की हवेली, पोद्दारों की हवेली आदि सैंकडों छोटी बड़ी हवेलियाँ देखने वालों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करती हैं.
इस नगर की अधिकतर हवेलियाँ आज उजाड़ हालत में हैं और जर्जर हो चुकी हैं. इन में कोई नहीं रहता. जैसे विलियम डेलरिम्पल ने दिल्ली की प्राचीन और उजाड़ ऐतिहासिक इमारतों के कारण दिल्ली को ‘दि सिटी ऑफ जिन्न’ कहा है, उसी प्रकार यह संज्ञा चूरू (या शेखावाटी) के लिये और भी उपयुक्त लगती है. रात के समय इन भूतिया हवेलियों में घुसने के लिये लोहे का कलेजा चाहिए.
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