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Old 28-04-2016, 10:59 PM   #4
rajnish manga
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Default Re: भाग्य और पुरुषार्थ

दूसरे दिन जंगल गया और नीलामी की बोली शुरू हुई और राजकुमारी के समझाए अनुसार जब भी बोली लगती, तो लक्कड़हारा हर बोली पर एक रूपया बढा कर बोली लगा देता। परिणामस्वरूप अंत में लक्कड़हारे की बोली पर वह जंगल बिक गया लेकिन अब लक्कड़हारे को और भी ज्यादा चिंता हुई क्योंकि वह जंगल पांच लाख में लक्कड़हारे के नाम पर छूटा था जबकि लक्कड़हारे के पास रात्रि के भोजन की व्यवस्था हो सके, इतना पैसा भी नही था।

आखिर घोर चिंता में घिरा हुआ वह अपने घर पहुँचा और सारी बात अपनी पत्नि से कही। राजकुमारी ने कहा- चिंता न करें, आप जिस जंगल में लकड़ी काटने जाते है वहाँ मैं भी आई थी एक दिन, जब आप भोजन करने के लिए घर नही आये थे और मैं आपके लिए भोजन लेकर आई थी। तब मैंने वहाँ देखा कि जिन लकड़ियों को आप काट रहे थे, वह तो चन्*दन की थी। आप एक काम करें। आप उन लकड़ियों को दूसरे राज्*य के महाराज को बेंच दें। चुंकि एक माह में जंगल का सारा धन चुकाना है सो हम दोनों मेहनत करके उस जंगल की लकड़ियाँ काटेंगे और साथ में नये पौधे भी लगाते जायेंगे और सारी लकड़ियाँ राजा-महाराजाओ को बेंच दिया करेंगे।

लक्कड़हारे ने अपनी पत्नि से पूंछा कि क्या महाराज को नही मालूम होगा कि उनके राज्य के जंगल में चन्दन के पेड़ भी हैं।

राजकुमारी ने कहा- मालुम है, परन्तु वह जंगल किस और है, यह नही मालूम है।

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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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