09-11-2015, 12:41 PM
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Re: सुख दुःख की अनुभूति
दुःख सुख की अनुभूति
‘दुःख?’ आपने आश्चर्य से पूछा, ‘क्या मैंने तुझे देने मैं कोई कमीं बरती है?’
‘जी नहीं, हर तरह की सुख समृद्धि है. फिर भी दुःख होता है. हृदय दुखी होता है. आपने दुःख क्यों पैदा किये. जवाब दीजिये.’
यह सुन कर आपने मेरे हाथ पकड़ कर मुझे उठाया और पूछा, ‘दूर पूर्व की ओर क्या दिखाई देता है?’
‘सूर्य.’
‘सूर्य अँधेरे को पहचानता है? उसे अँधेरा क्या है, यह भी पता नहीं, वह तो शाश्वत प्रकाश है. उसके अंत होने पर अँधेरा होता है. इसका अर्थ यह नहीं कि अँधेरा सूर्य से प्रगट हुआ है. तू मुझे क्या कह कर संबोधित करता है?’
‘परम आनंद.’
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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