Re: गुरुदत्त की फिल्म प्यासा
विजय अपनी शायरी पढ़ रहा है और उसकी पूर्व प्रेमिका मीना के चेहरे पर उसे खो देने का अफसोस साफ दिखाई पड़ रहा है. मीना ने बेरोजगार विजय को छोड़कर एक पैसे वाले रईस पब्लिशर मिस्टर घोष (रहमान) से शादी कर ली थी. कॉलेज के जलसे में मीना के शक़्क़ी पति मिस्टर घोष सब कुछ समझ जाते हैं. मिस्टर घोष ने बदले की भावना से विजय को अपने यहां नौकरी का ऑफर देते हैं. विजय मिस्टर घोष ऑफर स्वीकार कर लेता है.
जलन और बदले की भावना से विजय को नीचा दिखाने के लिए मिस्टर घोष एक शाम अपने घर पर पार्टी रखते हैं. पार्टी में शेर-ओ-शायरी की महफ़िल जमी. शराब का दौर शुरू हुआ और मेहमानों को शराब परोसने की जिम्मेदारी विजय को दी गई. महफिल में लोग अपने-अपने कलाम सुना रहे थे, उन बेकार नज्मों को सुनकर विजय खुद को रोक न सका और खड़े-खड़े गुनगुनाने लगा. ‘जाने वो कैसे लोग थे, जिनके प्*यार को प्*यार मिला’. मेहमान शायरों ने मिस्*टर घोष से कहा, ‘भाई… बहुत खुब वाह!… बहुत सुख़ननवाज़ है घर आपका… नौकर-चाकर भी शायरी करते हैं!’. एक शायर ने विजय की ओर मुड़ कर कहा, ‘तुम कुछ कह रहे थे, बर्ख़ुरदार? चुप क्यों हो गए? कहो! कहो!.
__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
|