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Originally Posted by sombirnaamdev
दिल जालों का क्या
जहाँ रात पड़े वहां सो जाइये
रिश्दे हुए जख्मों
पे तू ही बता क्या लाइए
सोमबीर सिंह सरोया
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मित्र ! आपका कलाम पुरअसर है, लेकिन बुरा न मानें, एक खरी बात कहना चाहता हूं ! आपकी शायरी के इस असर को आपकी भाषाई ग़लतियां ख़ाक में मिला देती हैं ! पोस्ट करने से पहले एक बार टाइप किए गए पर एक नज़र फिर डाल लें, तो बेहतर नतीज़ा आएगा - आपके लिए भी और हम जैसे पाठकों के लिए भी ! मसलन इसी सृजन को देखिए, एक बार मैंने पढ़ा, (यह मान कर कि संभवतः 'के' छूट गया है) दिल के जालों ... फिर समझ में आया कि यह दिलजलों है ! ... और दूसरी लाइन को आप ही बताइए, पाठक दिमाग लगा कर पढ़े तो रिश्ते पढ़े या रिसते ... लेकिन लिखा गया कैसे पढ़े ?