Re: आपस की बात अलैक शेरमन के साथ (Aapas ki Baat)
... लेकिन इससे पहले मैं हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के आजादी के बाद के इतिहास पर एक नज़र डाल लेना बेहतर समझता हूं, जिससे कई चीजें अपने-आप साफ़ हो जाएं ! यह सभी को पता है कि आज़ाद होते समय दोनों हिस्सों को विरासत में वही उपनिवेशकालीन व्यवस्था, वही न्यायपालिका, कार्यपालिका और नौकरशाही हासिल हुई ! दोनों तरफ वही मिडिल क्लास, गरीबी और जात-पांत के झगड़े भी मौजूद थे अर्थात लगभग समान परिस्थितियां ! यह सब होते हुए भी भारत ने 1947 से 1958 के बीच संविधान बना लिया, चुनाव करा लिए और लोकतंत्र की ओर तेज़ी से कदम बढ़ाए, लेकिन ऐसा पाकिस्तान में कुछ नहीं हुआ ! इसके बावजूद कि पाकिस्तान के कायदे-आज़म जिन्ना लगातार लोकतांत्रिक व्यवस्था लाने की दुहाई देते रहे ! उनके भाषणों को देखें, आपको साफ़ लगेगा कि वे पाकिस्तान में एक सच्ची जम्हूरियत के ही हिमायती थे, लेकिन हुआ एकदम उलट ! पहले दस साल जैसे-तैसे लड़खड़ाते गुज़र गए और 1958 में वहां मार्शल लॉ लागू हो गया, जो लगभग दस साल रहा ! उसके बाद 1973 के आसपास जुल्फिकार अली भुट्टो आए, लेकिन उन्होंने तमाम दावों के बावजूद न तो प्रेस को आजादी दी और न न्यायपालिका को स्वायत्त किया ! हर चीज़ पर उन्होंने अपना कड़ा अंकुश रखा अर्थात वही गलती उन्होंने दोहराई, जो पाकिस्तान के प्रारम्भिक शासकों ने की थी ! उनके बाद लगभग दस साल जिया उल हक रहे और उनके काल तक पाकिस्तान में सेना की भूमिका इतनी ज्यादा बढ़ चुकी थी कि वहां लोकतंत्र तो आया लेकिन वह एक लूला-लंगड़ा लोकतंत्र था ! इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यह था कि वहां राजनेताओं की कोई जमात ही खड़ी नहीं हुई थी, जो नेता सामने आए, उन्हें न तो यह अहसास था कि उन्हें शासन कैसे करना है और न ऐसा प्रशिक्षण ही उन्हें मिला था, यही कारण था कि वे आईएसआई और सेना के इशारों पर शासन चलाने में ही खैरियत समझने लगे ! अब फिर वही सवाल, यानी इसके लिए जिम्मेदार परिस्थितियां क्या हैं ? अब मैं आपको कुछ देर के लिए ले चलूंगा आजादी के लिए छटपटाते ब्रिटिशकालीन संयुक्त भारत में !
__________________
दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
Last edited by Dark Saint Alaick; 07-05-2012 at 12:09 AM.
|