ट्रीं…ट्रीं…अलार्म ने तीसरी बार मेरी “ड्रीम एक्सप्रेस” को रोकने की कोशिश की और मैंने उसे पिछले दोनों बार की तरह इस बार भी चपेट जमाकर उसे चुप कराया और तकिए से मुंह ढंककर वापस अपनी “ड्रीम एक्सप्रेस” शुरू कर दी। अभी मेरी ड्रीम एक्सप्रेस ने गति पकड़नी शुरू की ही थी कि पिताजी ने बाल पकड़कर मुझे उठा दिया। आंखों को मसलकर मैंने नींद से जागने की कोशिश की फिर चार गालियां सुनने के पश्चात ही मैंने मुंह धोया। बाहर बालकनी में चाय का कप और अखबार हाथ में लेकर मैं इधर-उधर झांकने लगा लेकिन रितु, स्वाति, पिंकी, साक्षी कोई नहीं दिखी शायद सब की सब कॉलेज चली गई थी और मैं निखट्टू आज फिर कॉलेज नहीं जा पाया। सामने देखा तो बंदरों की तरह हंसता हुआ मेरा दोस्त बिल्लू दिखाई दिया। सुबह-सुबह बिल्लू की शक्ल देखकर मैं डर गया कहीं आज फिर दिन खराब न हो जाए। तीन सप्ताह पहले सुबह सुबह बिल्लू की ही शक्ल देखी थी और शाम को मेरी शक्ल रूपा के भाइयों ने बिगाड़ दी थी।