29-09-2011, 11:26 PM
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#12
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Re: धूप खिलने को है
Quote:
Originally Posted by Dr. Rakesh Srivastava
कितनी संजीदगी से अपना पक्ष रख भेजा ;
मेरी किताब में इक मोर - पंख रख भेजा .
आँख अर्से से तरसती थीं एक मेहमां को ;
उसने इनके लिए ख़्वाबों का काफ़िला भेजा .
फिर से आकाश में बादल पे रंग चढ़ने लगे ;
धूप खिलने को है , सूरज ने दिलासा भेजा .
गुनगुने झोंकों ने फ़िर बर्फ़ पे हमला बोला ;
बसंत बन के फ़िर फूलों का सिलसिला भेजा .
बिख़र चुकी थी ज़िन्दगी वरक - वरक हो के ;
हमारे कल का बेहतरीन मसौदा भेजा .
आज कल आईना भी बावलापन करने लगा ;
निहारता हूँ जब , बस उसका ही चेहरा भेजा .
अब उसके साथ मिल , मुझको जो गुनगुनाना है ;
वो गीत लिखना मुझे , उसने बस मुखड़ा भेजा .
रचयिता ~~डॉ .राकेश श्रीवास्तव
विनय खण्ड,गोमती नगर,लखनऊ .
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डॉक्टर साहब आपकी रचनाएँ बहुत ही सुन्दर होती हैं /
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