Re: "सूबेदार बग्गा सिंह" - कमलेश बख्शी
कल करनैल से पूछूँगा, टयूब वेल लगा? ज़मीन और लेनी थी, ली? अंदर का घर छोटा था, बड़ा बनवाया? पर कैसे पूछूँ मत इस चक्कर में पड़ सूबेदार अपने पर काबू रख। मृत सूबेदार को ज़िंदा मत कर।
समय बीत रहा था, धीरे-धीरे ज़ख़्मी स्वस्थ हो अपने परिवार में लौट रहे थे। वह भी बेटे को स्वस्थ होता देख रहा था। घूमता-फिरता है, उसके क्वार्टर में भी आ बैठता है। एक दिन हिम्मत करके पूछ ही लिया,
तेरा ब्याह तो हो गया होगा।
कब से चाचा, दो बच्चे हैं, एक लड़का, एक लड़की। मेरी माँ ने बहू भी आर्मी वालों की लड़की चुनी। कहती है, सिविलियन डरपोक होते हैं। मुझे बहादुर बहू चाहिए। कोई उससे नाम पूछे तो कहेगी, सूबेदारनी सतवंत कौर।
अच्छा उसे अच्छा लग रहा था। करनैल अपने आप ही परिवार की बात छेड़ बैठा। उसके कलेजे में ठंडक पड़ रही थी।
मेरी बीवी है न जी, हर पोस्टिंग में साथ रही। जब मेरी पोस्टिंग कश्मीर में हुई, वहाँ तो फैमिली नहीं ले जा सकते थे, वह न मायके रही, न ससुराल। कहने लगी, यूनिट के साथ रहूँगी। जहाँ मूव करती है, पूरी यूनिट जाती है। साथ रहते सब एक परिवार हो जाते हैं। सब एक दूसरे का दुख-सुख बाँटते हैं।
कल तुझे छुट्टी मिल जाएगी।
बहुत उदास हो गए चाचा, कल मेरे बीवी-बच्चे आ रहे हैं, आपसे ज़रूर मिलवाऊँगा। और तेरी माँ नहीं आ रही?
मुझे छुट्टी मिल रही हैं, सुनकर अमृतसर गई हैं, अखंड पाठ करवा भोग डलवा गाँव आ जाएगी, तब तक हम भी पहुँच जाएँगे।
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