Re: शायर व शायरी
ग़ज़ल
साभार: गौरव पाण्डेय रूद्र
किसी के साथ इतनी दुश्मनी अच्छी नही लगती।
मिटाने की, तुम्हारी तिश्नगी अच्छी नही लगती।।
दिया ग़र चाहते हो हौसले का जल सके हरदम।
हवा के साथ इतनी ! दोस्ती अच्छी नही लगती।।
बग़ावत पर उतर आया मेरा दिल रात में मुझसे।
समझ आया कि ऐसी आशिक़ी अच्छी नही लगती।।
ग़रीबों के घरों को तोड़ अपना घर बना डाला।
दिखावे की तुम्हारी मुफ़लिसी अच्छी नही लगती।।
तुम्हारा ग़मज़दा होना किसी का दिल जलाता है।
यूँ इतनी आँख में भी अब नमी अच्छी नही लगती।।
ये माना मुद्दतों के बाद पायी है ख़ुशी इतनी।
लबों पर बेपनाह इतनी हँसी अच्छी नही लगती।।
तुम्हारा नाम लेकर जी रहे हैं ज़िन्दगी साहिब।
वगरना रूद्र हमको ज़िन्दगी अच्छी नही लगती।।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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