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Old 02-05-2013, 05:35 PM   #23
bindujain
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Default Re: ज़िन्दगी ... .

क्या भरोसा है इस ज़िन्दगी का

"दो बातन को भूल मत, जो चाहे कल्याण ।
नारायण एक मौत को, दूजो श्री भगवान ॥"


क्या भरोसा है इस ज़िन्दगी का, साथ देती नहीं ये किसी का ।
सांस रुक जाएगी चलते-चलते, शम्मा बुझ जाएगी जलते-जलते ॥

चार दिन की मिली जिंदगानी तुझे, चार दिन में ही करनी मुलाकात है ।
राख़ बनकर के एक दिन तो उड़ जायेंगे, उससे पहले ही प्रभु से मिलना तो है ॥
क्या भरोसा है इस ज़िन्दगी का...................

कोई तेरा नहीं सब है धोखा यहाँ, काहे जीवन को पल-पल गवांता है तू ।
राम को भूल बैठे हैं जिनके लिए, चार दिन में ही तुझको जला आयेंगे ॥
क्या भरोसा है इस ज़िन्दगी का...................

ले के कंधे पे तुझको चले जायेंगे, तेरे अपने ही तुझको जला आएंगे ।
चार दिन के मुसाफिर तू सो क्यों रहा, अब तो कर ले मोहब्बत मेरे राम से ॥
क्या भरोसा है इस ज़िन्दगी का...................

तुलसी मीरा के जैसे तो हम हैं नहीं, शबरी की जैसी भक्ति भी हममे नहीं ।
फिर भी तेरे ही बच्चे हैं हम रामजी, हमको अपनी शरण मैं ले लो रामजी ॥
क्या भरोसा है इस ज़िन्दगी का..................
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मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !!
दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !!
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