Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
आज फिर इस किताब को मैं पढ़ रहा था। कई बातें थी खास पर एक बात मन में बैठ रही थी जो कह रहा था कि आदमी को समाज के हिसाब से अपना चरित्र नहीं गढ़ना चाहिए बल्कि अपने हिसाब से, अपने मन के हिसाब से अच्छा आदमी बनना चाहिए। इस किताब ने गहरी छाप छोड़ी मेरे जीवन पर।
बहुत सालों बाद, लगभग आज से दस साल के बाद यह जान सका था जो किताब मैं पढ़ता था वह ओशो रजनीश की किताब थी ‘‘ मिटटी का दीया’’।
कई चीजें आपके जीवन पर गहरी छाप छोड़ जाती है जिसमें एक यह पुस्तक थी जिसे आज पढ़ रहा था और दूसरी यह घटना जो आज घटी थी। आज मेरी उदासी का कारण भी दूसरी घटना थी।
गांव में ऐसी ही एक घटना घटी जो मन को विचलित कर गया। बचपन से डायन-कमाइन, भुत-पिचास को नहीं मानता था पर आज सुबह सुबह ही मेरे दोस्त मनोज की मां को डायन के आरोप में घर से केश पकड़, खींच कर लाया गया और सौंकड़ों लोगों ने एक बीमार बच्चा को ठीक करने का दबाब बनाया। गंाव के भीड़ में ही चाची के साथ मार पीट ही नहीं किया गया, गंदी गंदी गालियां भी दी गई। बच्चा के पिता मास्टर साहब कह रहे थे
‘‘ तों डायन हीं तब हमहूं भगत के लाइबै, लंगटे नचाइबै।’’ यदि हमर बेटवा के कुछ हो गेलउ तब तोरा सब बापुत के जिंदा जला देबौ।’’ वहीं मेरे बगल से ही किसी ने कहा
‘‘ ई रंडीया हांकल डायन है हो, कल हमरों घूर घूर के देख रहलौ हल और तुरंत मथवा दुखाई लगलौ।’’
कोई नंगा करने की बात कह रहा था तो कोई गर्म लोहा से दागने की।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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