Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
पता नहीं क्या हुआ पर उस घटना के समय मैं मनोज के बगल में ही खड़ा था, वह रो रहा था और मैं उसे चुप रहने के लिए नहीं कह रहा था। यह हंगामा जब खत्म हुआ तब थोड़ी देर बाद पता चला कि बच्चा ठीक हो गया। गांव का कोई भी आदमी उस रास्ते से नहीं जाता जिस रास्ते में मनोज रहता था। मनोज था तो बाभन ही पर बहुत ही गरीब। एक घूर जमीन नहीं और बाबू जी दिल्ली मे कमाने गए थे पर पांच साल से लौट कर नहीं आये थे। रहने को एक घर भी नहीं था जिसकी वजह से उसका परिवार पुस्तकाल के खंडहरनुमा घर मंे रहता था। पहले वह जुआरियों, गंजेड़ियों और व्याभिचारियों का अड्डा था पर जब से मनोज का परिवार वहां रहने लगा, बैठकी बंद हो गई। उधर से कोई गुजरना नहीं चाहता, कोई अपने बच्चे को मनोज के साथ रहने नहीं देता और उसके घर चले जाने पर पिटाई अवश्य होती। पर मेरी बात अलग थी। मैं प्रति दिन उसके घर जाता। चाची कुछ न कुछ खाने को देती। उनकी बोली इतनी मधुर थी कि मां भी उस लाड़ से कभी नहीं बुलाया? इस घटना के बाद भी मैं मनोज के साथ उसके घर गया था। चाची बहुत रो रही थी जार-जार। रोते हुए अपने दुख भी जता रही थी जिसमें मास्टर साहब के बारे में बता रही थी।
‘‘गरीबका के कोई इज्जत नै है बउआ। इहे भंगलहबा परसूं रतिया हम्मर घारा में घूंस आइलो हल। जब हल्ला कईलिओं तब भगलो और आज डायन कहो हो।’’
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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