डायरी के पन्ने
डायरी के पन्ने (1)
(अंतर-जाल से)
अब एक बार फिर पीछे मुड़ें? जब मैं एल.टी. की परीक्षा दे चुकी थी। शायद परीक्षा परिणाम उस समय तक निकला भी नहीं था (या निकल गया था, याद नहीं) कि यू.पी. में सर्विस करने का अवसर मिला। हमारे प्रिन्सिपल डॉ. इबादुर रहमान खान जो वहाँ इन्सपेक्टर ऑव स्कूल्स भी थे, के हस्ताक्षर से एक फरमान आया कि वे मुझे मेरठ में डिप्टी इन्स्पैक्ट्रैस की पोस्ट पर लाना चाहते हैं। पर शर्त यह कि मैं उर्दू की कोई प्रारम्भिक परीक्षा उर्त्तीण कर लूँ । उर्दू का अलिफ़बे भी मैं नहीं सीख पाई थी। दादा ने अपनी मृत्यु से पूर्व एक बार मुझ उर्दू की वर्णमाला सिखाने का प्रयास भी किया, किन्तु मेरे पल्ले वह पड़ा ही नहीं। उन दिनों उत्तरप्रदेश में राजकीय कार्य की वर्नाक्यूलर भाषा उर्दू ही हुआ करती थी। अतः डॉ. खान को विनम्र शब्दों में उनकी ऑफर के लिए आभार तो व्यक्त किया ही साथ में उर्दू न सीख पाने की असमर्थता भी बता दी थी। दीदी को ही मैंने लिखा कि जयपुर में मेरे लिए कोई उचित नौकरी की कोशिश करें। उनका जो उत्तर आया बड़ा निराशाजनक था। कुछ ही दिनों पश्चात्* अचानक उन्होंने फौरन जयपुर पहुँचने का बुलावा भेजा। उस निराशाजनक उत्तर के पीछे अनुमान मात्र था कि एक ही विभाग में दो बहिनें कार्यरत हों, यह शायद उनके डाइरेक्टर ऑव एज्यूकेशन को मान्य नहीं होगा। यह 1940 का वर्ष था।
Last edited by rajnish manga; 31-08-2013 at 10:13 AM.
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