Re: डायरी के पन्ने
जयपुर में कन्या विद्यालय के नाम पर ही संस्था थी- महाराज गर्ल्स हाई स्कूल। उसमें हिन्दी अध्यापिका के पद के लिए मैं इन्टरव्यू देने गई। इन्टरव्यू लेने वालों में मुख्य थे जोबनेर के ठाकुर साहब श्री नरेन्द्र सिंह जी। उनका पहला प्रश्न था- राष्ट्रकवि कौन हैं? उनकी किसी कविता की पंक्तियाँ सुनाने को कहा। फिर सुभद्रा कुमारी चौहान की किसी प्रसिद्ध कविता की पंक्तियाँ सुनानी पड़ीं- ‘बुन्देले हर बोलों के मुख, हमने सुनी कहानी थी। खूब लड़ी मर्दानी वह तो, झाँसी वाली रानी थी॥ उस समय की उनकी मुख-मुद्रा से मुझे आभास हुआ की मेरा चयन हो जाएगा। यह घटना जुलाई मध्य की है। फिर नियुक्ति पत्र मिला और मैंने 1 अगस्त 1940 को महाराजा गर्ल्स हाई स्कूल में हिन्दी अध्यापिका का पद सम्हाल लिया। एक बात और याद आ गई। जब मैं बी.ए. पढ़ रही थी, जीजाजी का आग्रह हुआ कि हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग द्वारा आयोजित ‘विशारद’ की परीक्षा मैं दूँ । उस समय ‘विशारद’ हिन्दी को बी.ए. के समकक्ष मान्यता प्राप्त थी। वह परीक्षा भी मैंने सहजता से उत्तीर्ण कर ली थी। जोबनेर ठाकुर साहब- शिक्षामन्त्री, इस तथ्य से विशेष प्रभावित हुए थे। अब तक जो कुछ लिखा, टीटू, तुम निस्सन्देह बोर हो रही होगी। आवश्यक-अनावश्यक सब कुछ ही तो लिख मारा। अब आज इतना ही। अध्यापनकाल का प्रारम्भ कैसे हुआ इसका उल्लेख, कल तक के लिए स्थगित । ठीक?
Last edited by rajnish manga; 31-08-2013 at 10:13 AM.
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