Re: डायरी के पन्ने
डायरी के पन्ने (3)
आज सुबह-सुबह तुमसे फोन पर बात कर के लौटी अपने भ्रम का बयान स्वाति से करती-करती खूब हँसी। हँसने के ऐसे क्षण अब जीवन में यदा-कदा आते हैं ना? ना जाने किस ख़ुमारी में फोन पकड़ा होगा कि तुम्हारा स्वर भी नहीं पहचान सकी। उत्तर-प्रत्युत्तर में स्थिति स्पष्ट हुई। तो तुम आज नहीं आ रही हो। कल सन्ध्या समय लिखने की छुट्टी कर अपने खतों का अम्बार खोला। कुछ सॉर्टिंग की। आज वह कार्य बड़े परिश्रम से सम्पन्न कर पाई। दादा, भाईजी, शरण भाई, नाना, मौसी, दीदी, जीजाजी तथा अन्याय अपनी सहेलियों और सहपाठिनों के पत्र अलग-अलग छाँट कर पिन-अप कर दिये हैं। बिर्जन के पत्र तुम्हारे लिए विशेष रुचिकर होंगे। प्रतापभाई का एक पत्र गुजराती में लिखा प्राप्त हुआ। वह तुम्हीं से पढ़वा कर समझँगी। दादा का, न जाने क्यों, केवल एक ही पत्र मिला। निश्चय ही एक बण्डल और कहीं ढूँढने से मिल जाने की आशा है। हाँ अब बताओ इस नई कॉपी का शुभारम्भ किस प्रसंग से किया जाए? युनिवर्सिटी के अध्ययन-काल के कुछ दृश्य देखोगी? इलाहाबाद युनिवर्सिटी की स्थापना सन् 1887 में हुई थी। अतः 1937 में बड़ी धूमधाम से इसकी स्वर्ण जयन्ती मनाने की योजना बनी थी। इस शुभावसर पर भारत कोकिला श्रीमती सरोजनी नायडू का दर्शन किया। उनका भाषण भी सुना। उसी अवसर पर जो कॉन्वोकेशन हुआ, उसे उन्होंने ही अर्डेस किया था। इस समारोह के विभिन्न कार्यक्रम एक सप्ताह तक चलते रहे। एक सन्ध्या हिन्दी नाटक के लिए निश्चित की गई थी। श्री रविन्द्रनाथ द्वारा लिखित ‘विसर्जन’ नामक नाटक का मंचन किया गया। उसमें मुझे रानी का अभिनय करना था। इस नाटक का चयन किसने किया था व निर्देशन किसका था, यह सब बिल्कुल याद नहीं। हमारी एक सहपाठिन थी ‘प्रीती मुखर्जी’। बंगाली क्रिश्चियन थी। लखनऊ आई.टी. कॉलेज से इन्टर पास करके इस युनिवर्सिटी में प्रवेश लिया था। आई.टी. कॉलेज लखनऊ की लड़कियाँ अल्ट्रा फैशनेबल और इंगलिश बोलचाल में पटु थीं। हमारे प्रॉक्टर थे मिस्टर रुद्रा। उन्होंने हम लोगों के मेकअप का दायित्व प्रीति को सौंपा।
Last edited by rajnish manga; 31-08-2013 at 10:21 AM.
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