Re: डायरी के पन्ने
मैं साड़ी व कृत्रिम आभूषण आदि पहन कर जब मेकअप के लिए प्रीति के सामने खड़ी हुई उसने मेरे अधरों पर लिपस्टिक लगाना चाहा। इससे पूर्व मैं देख रही थी कि एक ही लिपिस्टिक अन्य सभी लड़कियों के होठों पर लेपा जा रहा था। मैंने बलवा कर दिया। प्रीति से साफ कह दिया कि मैं लिपिस्टिक नहीं लगवाऊँगी। उसने प्रेम से समझाने की कोशिश की – रानी का पार्ट कर रही हो – लिपिस्टिक लगाए बिना कैसे चलेगा? फिर भी मैं अपने निर्णय पर अड़ी रही। हमारे प्रॉक्टर साहब ग्रीन-रूम के बाहर कुर्सी लगा कर बैठे थे। सारी व्यवस्था उन्हीं को करनी थी। प्रीति गुस्से में तमतमाती रुद्रा साहब के पास पहुंची और मेरी शिकायत उनसे कर आई। हमारे प्रॉक्टर साहब बहुत ही स्नेही, सम्वेदनशील और सबका कष्ट दूर करने के लिए प्रसिद्ध थे। उन्होंने दरवाज़े पर खड़े हो कर मुझे आवाज़ दी। मैं घबराती हुई उनके सामने आ गई। शर्म और घबराहट के कारण मैं उनसे नज़र नहीं मिला सकी। उन्होंने स्नेहपूर्वक मेरे सिर पर हाथ रख कर कहा – ‘‘मेरी ओर देखो…” बोले – ‘‘तुम लिपिस्टिक नहीं लगाना चाहतीं – मैं मान गया पर दूसरा उपाय तुम्हारे पास क्या है?” मैंने कितनी प्रफुल्लता से उन्हें कह दिया – पान खा लूँगी। होठों पर अच्छी लाली जा जाएगी। तत्काल ही उन्होंने चपरासी को भेज छः पान मँगवा दिये बस क्या था मंच पर जाने से कुछ ही मिनट पहले मैं पान चबा लेती। लिपिस्टिक से बढ़िया लाली अधरों पर रच जाती। प्रीति इस व्यवस्था से बहुत कुढ़ गई क्योंकि उसे विश्वास था कि रुद्रा साहब मुझे तिड़ी पिला कर लिपिस्टिक लगाने को अनिवार्य करवा देंगे। यह ड्रेस रिहर्सल के दिन का वृत्तान्त है। उस दिन हॉल में स्टूडेन्ट जैन्ट्री ही थी। कुछ शरारती तत्व उनमें होने ही थे। दो चार लड़कों ने एक विचित्र योजना बना डाली। हुआ यों कि उस नाटक के ओपनिंग सीन में देवी का एक छोटा सा मन्दिर दर्शाया गया। जिस रानी का पार्ट करने मैं जा रही थी, वह निःसन्तान थी। अतः वह देवी की पूजा करने आई और देवी से एक पुत्र प्राप्ति की कामना कर रही थी।
Last edited by rajnish manga; 31-08-2013 at 10:23 AM.
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