Re: मेरी ज़िंदगी : मेरे शहर
उन दिनों बम्बई (वर्तमान में मुंबई) में रहने वाले एक प्रवासी नवयुवक श्री पुरुषोत्तम (जिन्होंने बातचीत के दौरान अपना परिचय ‘मास्टर पुरुषोत्तम’ के तौर पर दिया था) जी कुछ दिनों के लिये चूरू, जो उनकी जन्मभूमि थी, में रहने के लिये आये हुये थे. कुछ मित्रों ने उनसे मेरा परिचय करवाया जो उनके भी घनिष्ट मित्र थे. मालूम हुआ कि वो पाँच-छ: वर्ष के बाद यहाँ पधारे थे. आने वाले लगभग एक माह तक वो हमारी मित्र मंडली के साथ ही रहे. चूरू में बिताये उनके बचपन के बारे में, उनके माता पिता के बारे में, भाई बहनों के बारे में और वर्तमान में (उस समय) वे बम्बई में क्या काम कर रहे थे? इत्यादि. वह मुझसे उम्र में लगभग पाँच वर्ष छोटे थे अर्थात उस समय वे २५ वर्ष के थे. उनका शरीर दुबला पतला तथा छरहरा था, रंग गेहुआँ था. सुरुचिपूर्ण वेशभूषा में रहते थे.
मैं उनके घर कई बार गया. यहाँ उनका घर तो कई कई साल बन्द ही रहता है, ताला ही लगा रहता है. जब कोई बम्बई से यहाँ आता ही तो ताले खुल जाते हैं और साफ़ सफाई हो जाती है. फिर उनके जाने के बाद अंदर और बाहर के दरवाजों पर फिर से ताले लटका दिए जाते थे.
उन्होंने अपना एक छोटा सा फोटो अल्बम भी दिखाया जिसमे उनकी यहाँ बिताए बचपन की यादें सुरक्षित थीं. कुछ फोटो ऐसे थे जिनमे पुरुषोत्तम जी को स्टेज पर बैठे हुये और अपना संगीत कार्यक्रम पेश करते हुये दिखाया गया था. उन्होंने बताया कि मैं बम्बई में इसी तरह के प्रोग्राम दिया करता हूँ. इससे उनको कुछ आमदनी हो जाती थी. कई बार दूसरे बड़े कलाकारों के कार्यक्रम में भी वह शिरकत कर लेते थे.
एक बार जब मैं उनके घर गया तो उन्होंने मुझे अपना एक पुराना ग्रामोफोन भी दिखाया. वह एक बड़े बक्से में बन्द था. उन्होंने उसको खोल कर बड़े प्यार से एक साफ़ कपड़े से उसकी सफाई की. उसे अच्छी तरह करीने से टेबल पर जमा कर रखा. अपने ग्रामोफोन रेकार्डों की भी धूल मिटटी को साफ़ किया. सभी रिकॉर्ड 78 rpm के थे और पुराने ज़माने के थे.
|