07-01-2015, 09:16 PM
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Re: खलील जिब्रान और उनकी रचनायें
खलील जिब्रान
लेकिन यदि तुम भयवश केवल प्रेम की शान्ति और प्रेम के उल्लास की ही कामना करते हो तो तुम्हारे लिए यही अच्छा होगा कि तुम अपनी नग्नता को ढक लो प्रेम को कूटने वाले खलिहान से बाहर निकल जाओ और ऋतुहीन संसार में जा बसों, जहाँ तुम न पूरी तरह हँस पाओगे और न पूरी तरह रो पाओगे.
प्रेम किसी को अपने आपके सिवा न कुछ देता है और न कुछ अपने आप के सिवा कुछ लेता है. प्रेम न किसी का स्वामी बनता है और न किसी को अपना स्वामी बनाता है. क्योंकि प्रेम प्रेम में ही पूर्ण है.
जब तुम प्रेम करो तो यह मत कहो कि ‘ईश्वर मेरे हृदय में है.” बल्कि यह कहो कि “मैं ईश्वर के हृदय में हूँ.”
और तुम यह कभी न सोचना कि तुम प्रेम का पथ निर्धारित कर सकते हो, क्योंकि प्रेम यदि तुमको अधिकारी समझता है तो स्वयं तुम्हारी राह निर्धारित करता है.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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