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Originally Posted by rajnish manga
दिनों दिन राजनीति की स्थिति पहले के मुक़ाबले खराब होती जा रही है.इसमें कोई किसी से कम नहीं है. व्यक्तिगत आरोप लगाए जा रहे हैं. बौद्धिक स्तर तथा समझदारी पर सवाल उठाये जा रहे है तथा दोनों तीनो पक्ष नए नए जुमलों से अन्य पार्टियों को घटिया साबित करने पर तुले हुये हैं. अब मुद्दे नीचे दब गए हैं और जुमलेबाजी हावी हो गई है. इसी तथ्य को मैंने उक्त कविता में रेखांकित करने का प्रयास किया है. आपकी सुंदर टिप्पणी के लिये हार्दिक धन्यवाद, दीप जी.
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बात तो बिल्कुल सही है , मुझे लगता है कि इसका एक कारण बहुत लम्बे समय तक चलने वाले चुनाव भी हैं। चुनाव में इतने अनावश्यक चरण कर दिये गये हैं कि अनावश्यक टिप्पणियाँ होने लगी हैं क्योंकि जगह जगह भाषण देना होता है और भाषणों में नवीनता लाने के लिये बेवजह की बयानबाजी होती है।