22-01-2013, 08:05 PM
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#49
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Re: हरिशंकर परसाई की व्यंग्य रचनाये
21 जनवरी
बन्नू की मांग सिद्धांततः स्वीकार कर ली गयी।
व्यावहारिक समस्याओं को सुलझाने के लिए एक कमेटी बना दी गयी है।
भजन और प्रार्थना के बीच बाबा सनकीदास ने बन्नू को रस पिलाया। नेताओं की मुसम्मियां झोलों में ही सूख गयीं। बाबा ने कहा कि जनतंत्र में जनभावना का आदर होना चाहिए। इस प्रश्न के साथ कोटि-कोटि जनों की भावनाएं जुड़ी हुई थीं। अच्छा ही हुआ जो शांति से समस्या सुलझ गयी, वरना हिंसक क्रांति हो जाती।
ब्राह्मणसभा के विधानसभाई उम्*मीदवार ने बन्नू से अपना प्रचार कराने के लिए सौदा कर लिया है। काफी बड़ी रकम दी है। बन्नू की कीमत बढ़ गयी।
चरण छूते हुए नर-नारियों से बन्नू कहता है, “सब ईश्वर की इच्छा से हुआ। मैं तो उसका माध्यम हूं।”
नारे लग रहे हैं – सत्य की जय! धर्म की जय!
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