Re: सफलता के सूत्र :: देवराज के साथ
अमेरिकी पादरी एवं मनोविज्ञानी विन्सेंटपील ने अपनी उक्त पुस्तक ”ट्रैजरी आफ करेज एण्ड कान्फीडेन्स” में इस तथ्य की पुष्टि एक घटना के माध्यम से की है। युद्ध के समय एक बालक बुरी तरह घायल हो गया जिसे अस्पताल में भर्ती कर दिया गया। बच्चे की माँ को इस बात की सूचना भिजवा दी गयी कि आपका बच्चा जल्दी ही दम तोड़ने वाला है। वह दौड़ती हुई अस्पताल पहुँची और अपने बेटे से मिलने के लिए आग्रह करने लगी। लेकिन चिकित्सकों के मुँह से यही निकला कि बच्चा अपनी जिन्दगी और मौत के मध्य की स्थिति से गुजर रहा है। मामूली सी उत्तेजना भरा माहौल उसकी जीवन लीला को समाप्त कर सकता है। वह इस समय अचेतन अवस्था में पड़ा है उसे कोई आभास नहीं है कि मुझसे मिलने के लिए कौन आया है? माँ ने यह शर्त मान ली कि वह बच्चे के पास किसी तरह का कोई शब्द मुँह से नहीं निकालेगी और न ही किसी तरह का शोर-शराबा मचायेगी। मात्र बेटे के पास थोड़ी देर बैठने की ही इच्छा प्रकट की। चिकित्सकगण महिला की करुण और ममता भरे भावों को देखकर द्रवित हो उठे और मिलने की आज्ञा दे दी। पर शर्त ज्यों की त्यों बनी रही कि बच्चे के पास बैठकर मुँह से कोई शब्द न निकालें। माँ बच्चे के पास बैठी और अपने पवित्र अन्तःकरण से ईश्वर से प्रार्थना करने लगी। बच्चे की आँखें बन्द थीं। माँ ने उसकी भौंहों पर धीरे-धीरे हाथ फेरा। बिना नेत्र खोले ही बच्चा बोल उठा कि माँ तुम आ गई। माँ के स्नेह सद्भाव का हाथ उसके लिए दैवी अनुकंपा, आशीर्वाद-वरदान के रूप में फलित होने लगा और वह जल्दी आरोग्य लाभ प्राप्त कर सका।
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मेरी चित्रशाला : दिल दोस्ती प्यार ....या ... .
तुमने मजबूर किया हम मजबूर हो गये ,...
तुम बेवफा निकले हम मशहूर हो गये ..
एक " तुम " और एक मोहब्बत तेरी,
बस इन दो लफ़्ज़ों में " दुनिया " मेरी..
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