Re: मुहावरों की कहानी
मैंने दरोगा को तुम्हारी शादी की दस्तूरी नहीं भिजवाई थी. इसलिए उसने सारा दहेज ही उठवा लिया.
दामाद ने पूछा, “दस्तूरी क्या?”
सेठ बोला, “यह भी एक तरह का लगान है, स्थानीय टैक्स की तरह.”
दामाद डर कर बोला, “थानेदार तो अभी और बदला ले सकता है?”
“हाँ, इसीलिये मैंने रिपोर्ट लिखवाने की गलती नहीं की. नदी में रह कर मगर (मच्छ) से बैर ठीक नहीं.” सेठ ने कहा.
सभी ने समर्थन में सर हिलाया और वहाँ से चल दिए.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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