Re: पापा की सज़ा
मेरी कार घर के सामने रुकी। वहां पुलिस की गाड़ियां पहले से हीमौजूद थीं। पुलिस ने घर के सामने एक बैरिकेड सा खड़ा कर दिया था। आसपास केकुछ लोग दिखाई दे रहे थे - अधिकतर बूढ़े लोग जो उस समय घर पर थे। सब कीआंखों में कुछ प्रश्न तैर रहे थे। कार पार्क कर के मैं घर के भीतर घुसी।पुलिस अपनी तहकीकात कर रही थी। ममी का शव एक पीले रंग के प्लास्टिक में रैपकिया हुआ था। ... मैनें ममी को देखना चाहा..मैं ममी के चेहरे के अंतिमभावों को पढ़ लेना चाहती थी।.. देखना चाहती थी कि क्या ममी ने अपने जीवन कोबचाने के लिये संघर्ष किया या नहीं। अब पहले ममी की लाश - कितना कठिन हैममी को लाश कह पाना - का पोस्टमार्टम होगा। उसके बाद ही मैं उनका चेहरा देखपाऊंगी।
एक कोने में पापा बैठे थे। पथराई सी आंखें लिये, शून्य मेंताकते पापा। मैं जानती थी कि पापा ने ही ममी का ख़ून किया है। फिर भी पापाख़ूनी क्यों नहीं लग रहे थे ? .. पुलिस कांस्टेबल हार्डिंग ने बताया किपापा ने स्वयं ही उन्हें फ़ोन करकेबताया कि उन्होंने अपनी पत्नी की हत्याकर दी है।
पापा ने मेरी तरफ़ देखा किन्तु कोई प्रतिक्रिया व्यक्तनहीं की। उनका चेहरा पूरी तरह से निर्विकार था। पुलिस जानना चाह्यती थी किपापा ने ममी की हत्या क्यों की। मेरे लिये तो जैसे यह जीने और मरने काप्रश्न था। पापा ने केवल ममी की हत्या भर नहीं की थी – उन्होंने हम सब केविश्वास की भी हत्या की थी। भला कोई अपने ही पति, और वो भी सैंतीस वर्षपुराने पति, से यह उम्मीद कैसे कर सकती है कि उसका पति उसी नींद में ही हमेशा के लिये सुला देगा।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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