25-01-2016, 03:56 PM
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Re: पापा की सज़ा
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Originally Posted by soni pushpa
इसलिए कहा जाता है की कितनी भी बड़ी मुसीबत क्यूँ न आये इन्सान को खुद का मानसिक संतुलन नहीं गवाना चाहिए यदि हम दुःख के समय या परेशानियों में टूट जाते हैं तब एइसे हालत खड़े होते हैं कोई भी बात मन को चुभ रही हो तो उसे मन में स्थान देने की बजाय इग्नोर करना चाहिए वर्ना एक छोटी सी बात बड़ा घाव बनकर नासूर बन जाती है .
ये कहानी आज के समय की सत्यता है भाई .. इंसानों को आज हजारो समस्याओं ने घेर रखा है और एइसे में , एइसे किस्से समाज में बनते जा रहे हैं कही पैसे के लिए, कही रिश्तों के लिए, अहिं आभाव तो कही बीमारियाँ हैं जिसने समाज को एईसी कहानिया बनाने के लिए मजबूर किया है .
बहुत अच्छी कहानी सेर करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद भाई
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आपने कहानी के मर्म को समझते हुये अपनी प्रतिक्रिया के ज़रिये आज के सामाजिक ताने-बाने की सार्थक व्याख्या की है. बहुत बहुत धन्यवाद, बहन.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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