Re: शायर व शायरी
पैसे की माया
साभार: तरुणा मिश्रा
सबका तन मन धन है पैसा
कितनो की धड़कन है पैसा ;
फटा हुआ दामन है पैसा...
रोता इक बचपन है पैसा ;
रिश्तों का आधार बना पर ..
ख़ुद कितना निर्धन है पैसा
दावा करता सुलझाने का...
बड़ी अजब उलझन है पैसा ;
प्यार मुहब्बत ऐसे करते...
सपनो का साजन है पैसा ;
अलग अक्स दिखलाता सबको..
कैसा ये दर्पण है पैसा ;
ख़ार बहुत और गुल हैं थोड़े...
ऐसा इक गुलशन है पैसा ;
धूप सरीखा खिला खिला सा...
और कभी सावन है पैसा ;
आँगन में दीवार उठा दे...
बच्चों में अनबन है पैसा ;
'तरुणा' कितने ही लोगों के...
जीवन का दर्शन है पैसा...!!
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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