Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
‘‘काहे ऐसे करो हीं यार, छोड़ के भाग गेलहीं।’’
‘‘की करीए, जे कहीं उ करे ले तैयार हिए। हमरा पर की बितलै से तों नै ने समझमहीं।’’
‘‘चल कहीं भाग चलिए।’’
‘‘जब कोई नै सुनतै तब की करबै।’’
और फिर उसके गुलाबी अधरों की पंखुड़ी का एक कोमल स्पर्श मेरे गालों पर हुआ। मन तृप्त हो गया।
‘‘मिलन नै होतै यार।’’
‘‘हां हो, भगवान जब चाहथिन तब जुदा के करतै।’’ मैने कहा।
तभी देखा कि उसका भाई दिल्लिया भैंस को हांकता हुआ उधर ही आ रहा था। क्षण मात्र गंवाए मैं यूं निकला जैसे तार से होकर करंट दौड़ती हो। बगल की गली से होता हुआ मैं घर आ गया। इस छोटी सी मुलाकात मंे रीना ने अपने मन के जिस उद्गार को पन्नों पर उकेरा था, मुझे थमा दिया था। घर आकर सबसे पहला काम उसे पढ़ने का किया। उसने भी मेरे पत्र का उसी अंदाज में जबाब दिया था। और उसमें प्रेम की बातें कम, शादी, परिवार और आगे का भविष्य इसी सब विषय पर ज्यादा चर्चा थी।
जलते हुए अंगार को हथेली पर रखने की तरह प्रेम को सीने में रख लिया है। सब एक खलनायक की तरह मुझे देखने लगे। दोस्तों का साथ घीरे घीरे छूटने लगा या कम हो गया। लगा जैसे दूध से मख्खन की तरह मेरे प्रेम को जुदा करने की कोशिश सब ने मिल कर शुरू कर दी हो।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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