Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
फिर कई दिनों का दौर चला जिसमे फूफा को झूठ बोलना सिखाया गया। कैसे दुकान से आलू लाने गए और आवाज सुन कर खिड़की से झांका और नाजायज संबंध की बात सुनी बगैरह, बगैरह। मुझे यह सब अच्छा नहीं लगा। मैंने इसका विरोध भी किया पर बात जब गोतिया की हो तो कौन सुनता है। सो पुलिस आई और सभी गांव की भीड़ में फूफा के मुंह से एक मृत महिला को कलंकित कर दिया गया। कई लोग थे जिन्होंने इस बात की गवाही दी और नजायज संबंध की बात कही। मेरा मन व्यथित होता रहा पर यह सब बड़ों की बात थी।
पर, यह सब हो क्यों रहा था। बजह बिल्कुल साफ थी। चौकीदार का गांव में दबदबा था। किसी से उलझ जाना और तंरंत मुरेठा बांध कर पुलिस को बुलाने के लिए निकल पड़ना, फिर विरोधियों के द्वारा उसके पैर पर गिर कर गिड़गिड़ाना। यह सब अक्सर होता रहता जैसे चौकीदार न होकर, लाट साहब हो। गांव के कुछ लोग, जो गांव में अपना वर्चस्व जमाना चाहते, वे इसका तोड़ निकालने की जुगाड़ में रहते। और चुनाव के समय वह सत्ता पक्ष बालों के साथ खड़ा रहता, जिससे भी लोगों में नाराजगी थी।
खैर बात चाहे जो हो, पर इस सब बातों से मन दुखी होता और लगता कि गांव में कुछ चालू लोगों के द्वारा कैसे सीधे साधे लोगों को फँस लिया जाता है।
खैर, मुझे इन सब चीजों से कोई खास मतलब तो था नहीं, सो मैं अपने में मगन रहने लगा। आज देर शाम छत पर जाकर बैठ गया। चुपचाप। फिर थोड़ी देर के बाद छत पर टहलने लगा। इसलिए की शायद वह मेरी बेचैनी को समझेगी। इस वक्त रात्री के दस बज गए थे और मैं छत पर चुपचाप बैठा हुआ था। एक एहसास के सहारे, शायद आज रात वह मिलने आए....
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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