Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
कई दिनों से मैंने चांद का दीदार नहीं किया था। तीन चार दिनों से वह दिखाई नहीं दे रही थी। मैं जानता था इसका कारण नाराजगी नहीं, शर्म है। यही सब सोंचता विचारता मैं घर की ओर लौट रहा था। गांव के करीब पहूंचने पर मकई के खेतों के बीच से होकर गुजरना पड़ता था। पतली सी पगदंडी से चुपचाप सर झुकाए जा रहा था की तभी एक खनकती हुई आवाज सुनाई दी-
‘‘साला, मुड़िया गोंत के केकर याद में खोल जा रहलहीं हें।’’
यह रीना थी। शायद उसने मुझे जाते हुए देख लिया होगा और इस उम्मीद से की इसी रास्ते से लौटूंगा अपने भतीजे को गोद लिए वह उसी पर चहलकदमी कर रही थी। मैं उसे देखने लगा। आज वह कुछ ज्यादा ही खूबसूरत लग रही थी। आज वह साधारणतः फ्रॉक में रहने की जगह सलवार समीज में थी। आज वह कुछ ज्यादा ही खूबसूरत लग रही थी। मैं उसे प्यार भरी नजरों से देखने लगा।
‘‘देख, ऐसे मत देख।’’ वह शर्माने लगी।
‘‘काहे अब काहे डर लगो है।’’
‘‘डर तो हमर जूत्ती के भी नै लगो है।’’
‘‘और की हाल।’’ मैंने थोड़ी तंज लहजे में कहा।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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