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Re: ~!!चन्द्रकान्ता!!~
हुक्म पाते ही सबसे पहले रामलाल क्रूरसिंह के घर पहुंचा। महाराज के मुंशी को जो हुक्म तामील करने गया था, रामलाल ने कहा, ‘‘ पहले मुझको रुपये दे दो कि उठा ले जाऊं और महाराज को आशीर्वाद करूं। बस, जल्दी दो, मुझ गरीब को मत सताओ!’’ मुंशी ने कहा, ‘‘अजब आदमी है, इसको अपनी ही पड़ी है ! ठहर जा, जल्दी क्यों करता है !’’ नकली रामलाल ने चिल्लाकर कहना शुरू किया, ‘‘दुहाई महाराज की, मेरे रुपये मुंशी नहीं देता।’’कहता हुआ महाराज की तरफ चला। मुंशी ने कहा, ‘‘ले लो, जाते कहाँ हो, भाई पहले इसको दे दो !’’
रामलाल ने कहा, ‘‘हत्त तेरे की, मैं चिल्लाता नहीं तो सभी रुपये डकार जाता !’’ उइस पर सब हंस पड़े। मुंशी ने दो हजार रुपये आगे रखवा दिया और कहा, ‘‘ले, ले जा !’’ रामलाल ने कहा, ‘‘वाह, कुछ याद है ! महाराज ने क्या हुक्म दिया है ? इतना तो मेरी जेब में आ जायेगा, मैं उठा के क्या ले जाऊंगा ?’’ मुंशी झुंझला उठा, नकली रामलाल को खजाने के सन्दूक के पास ले जाकर खड़ा कर दिया और कहा, ‘‘उठा, देखें कितना उठाता है ?’’ देखते-देखते उसने दस हजार रुपये उठा लिये। सिर पर, बटुए में, कमर में, जेब में, यहां तक कि मुंह में भी कुछ रुपये भर लिये और रास्ता लिया। सब हँसने और कहने लगे, ‘‘आदमी नहीं, इसे राक्षस समझना चाहिए !’’
महाराज के हुक्म की तामील की गई, घर लूट लिया गया, औरत-मर्द सभी ने रोते-पीटते चुनार का रास्ता पकड़ा।
तेजसिंह रुपया लिये हुए वीरेन्द्रसिंह के पास पहुंचे औऱ बोले, ‘‘आज तो मुनाफा कमा लाये, मगर यार माल शैतान का है, इसमें कुछ आप भी मिला दीजिए जिससे पाक हो जाये ! वीरेन्द्रसिंह ने कहा, ‘‘यह तो बताओ कि लाये कहाँ से ?’’ उन्होंने सब हाल कहा। वीरेन्द्रसिंह ने कहा, ‘‘जो कुछ मेरे पास यहाँ है मैंने सब दिया !’’ तेजसिंह ने कहा, ‘‘मगर शर्त यह है कि उससे कम न हो, क्योंकि आपका रुतबा उससे कहीं ज्यादा है।’’ वीरेन्द्रसिंह ने कहा, ‘‘तो इस वक्त कहाँ से लायें ?’’तेजसिंह ने जवाब दिया, ‘‘तमस्सुक लिख दो !’’ कुमार हंस पड़े और उंगली से हीरे की अंगजी उतारकर दे दी। तेजसिंह ने खुश होकर ले ली औऱ कहा, ‘‘परमेश्वर आपकी मुराद पूरी करे। अब हम लोगों को भी यहाँ से अपने घर चले चलना चाहिए क्योंकि अब मैं चुनार जाऊंगा, देखूं शैतान का बच्चा वहाँ क्या बन्दोबस्त कर रहा है।’’
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