Re: महाभारत के पात्र: कर्ण
महाभारत के पात्र: कर्ण
दुर्योधनमेरे साथ बैठ द्यूतक्रीड़ा के आयोजन की चर्चा कर रहा है। मुझे जुआ जैसानिकृष्ट क्रीडा या लाक्षा गृह जैसे गलत और कपटपूर्ण कार्यों का आयोजन पसंदनहीं है। अतः मैंने दुर्योधन को बहुत रोका और समझाया। मुझे मामा शकुनि केगलत परामर्श भी नापसंद हैं। परंतु जीत शकुनि की हुई। वीरता और युद्ध सेपाँडवों का सामना करने के बदले छल और कपट का सहारा लिया गया।
पर, द्यूतक्रीड़ा के दौरान पाँडवों को पराजित होते देख कलेजे को बड़ी ठंडक पहुँचरही है। अब लग रहा है दुर्योधन ने उचित किया है पाँडवों को इस तरह अपमानितकर। बचपन से ये भी तो ऐसे ही मुझे अपमानित करते आए हैं। आज उस द्रौपदी कोभी अपमानित होना पड़ेगा, जो मेरे अपमान का कारण बनी थीं। मैंने द्रौपदी कोबहुपति नगरवधु कह चीरहरण के लिए कौरवों को आक्रोशित कर भड़काया। यह द्रौपदीको ना पाने और मेरे अंदर विश्व के प्रति भरे आक्रोश ने मुझे करवाया था। परसच बताऊँ? द्रौपदी का अपमान मेरे हृदय को कचोटता है। आज भी मैं अपनी उस भूलके लिए शर्मिंदा हूँ।
वनवास केलिए प्रस्थान करते हुए द्रौपदी के सारे आभूषण और मूल्यवान वस्त्र दुर्योधनने उतरवा लिए हैं, यह ज्ञात होते हीं मैंने सम्मानपूर्वक उन्हें कुछ आभूषणभिजवाए। पर उस सौंदर्यमयी स्वाभिमानी नारी ने उन्हें ठुकरा दिया।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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