Re: कार में सत्संग
इसे विडम्बना ही कहिए कि जब हमारा बुरा समय आता है तभी हमें सत्संग की याद आती है। यही बुरा समय जब 'लम्बे बुरे समय' में परिवर्तित हो जाता है तो हम सत्संग-प्राप्ति के लिए बुरी तरह तड़पने लगते हैं, क्योंकि हम जानते हैं कि लम्बे बुरे समय की वेदना से निकलकर चैन और सुकून की नींद सोने के लिए सत्संग के अतिरिक्त और कोई मार्ग नहीं। इसीलिए संत कबीरदास जी कहते हैं-
दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय॥
अर्थात्- दुःख के समय सभी भगवान को याद करते हैं पर सुख में कोई नहीं करता। यदि सुख में भी भगवान को याद किया जाए तो दुःख हो ही क्यों?
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