Re: मुहावरों की कहानी
मुहावरों पर पिटाई, क्यों भाई?
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‘एक बोला, तुमने मेरा अपमान किया है। दूसरे ने कहा, मेरी भी इंसल्ट हुई है। इसके बाद दोनों ने युगलगान करते हुए मेरी कंप्लीट इंसल्ट की। पांडे जी, वह तो गनीमत समझिए कि वहां पर कोई छब्बे नहीं था, वरना वह भी मुझे कूटता।’ मामला वास्तव में बीहड़ था। मैंने अमर अमरोहवी को उकसाते हुए कहा, ‘भैये, इतनी अच्छे सिक्स पैक शरीर के होते हुए तुम पिटकर आ गए। सौ सुनार की, एक लोहार की। धमक देते दुबे-चौबे दोनों बंधुओं को!’
अमर अमरोहवी कांखता हुआ दाएं-बाएं देखने लगा। फिर खुद ही कह उठा, ‘पांडे जी, आप सोच रहे होंगे, मैं अगल-बगल क्या देख रहा था? तो मैं यह देख रहा था कि कहीं कोई सुनार या लोहार महोदय तो मेरी बगल में नहीं खड़े हैं! मैं तो उनके हाथों से ही पिटा, आप तो आज हथौड़े से कूटे जाते।’
इसके बाद अमरोहवी ने, ‘धोबी का कुत्ता, न घर का, न घाट का,’ ‘कहां राजा भोज, कहां गंगू तेली,’ ‘जाट रे जाट, तेरे सिर पर खाट,’ ‘नाई रे नाई, कितने बाल,’ जैसे लगभग तीन दर्जन जुमले मेरे कानों में टपकाते हुए सख्त हिदायत दी कि मैं इनका उच्चारण न करूं। और हो सके तो विभिन्न जातियों और समुदायों के उल्लेख वाले इन मुहावरों को भरसक शब्दकोश, साहित्य, इतिहास और अपनी स्मृति तक से मिटाने का प्रयास करूं। वर्ना खैर नहीं। अपना शायर यार अमर अमरोहवी तो इतना कहकर फूट लिया और मैं यहां समाज के सर्वमान्य मुहावरे की तलाश में अपना मत्था फोड़ रहा हूं। और मुहावरे हैं कि मुंह बिरा रहे हैं।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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