21-06-2014, 07:00 PM
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#505
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
Quote:
Originally Posted by dr.shree vijay
थे खौफज़दा-ए-अंजाम-ए-ज़िन्दगी, कैद-ए-जिस्म-ए-विदाद सही !
क़फ़स-ए-इल्तिफ़ात-ए-परिंदा इस कद्र, ख़्वाब-ए-रिहाई का निशाँ नहीं !!.....
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विदाद = मुहब्बत, क़फ़स = पिंजरा, इल्तिफ़ात = दोस्ती,
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हजार नाकामियाँ हों 'नश्तर' हजार गुमराहियाँ हों लेकिन,
तलाशे-मंजिल है अगर दिल से, तो एक दिन लाजिमी मिलेगी...
-हरगोविंद दयाल 'नश्तर'
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