पवित्रा जी।
अगर में कहुं, आपने आते ही फोरम पर धुम मचा दी है तो अतिशयोक्ति नही होगी. आपके नए सुत्र और पुराने सुत्रो पर आपका योगदान भी प्रशंसा-पात्र है। में समझता हुं, मेरे बाकी मित्र भी ईस बात से सहमत होंगे।
मेरे मतानुसार जीवन क्या है, जीवन का उद्देश्य क्या होना चाहीए ईस के बारे में वेद-ग्रंथ में जो लिखा है वही सत्य होगा। चाहे हम जिस धर्म के हो, हमारे लिए धर्मग्रंथ बने हुए है जहां विद्वानो ने मंथन कर के जीवन का पुरा नीचोड लिखा है।
समय, काल के परिवर्तन के साथ हम भी बदल जातें है। आज ईस अत्याधुनीक युग में यह सब सोचने का समयभी नही मिलता। हमारी प्रायोरीटी बदल जाती है। हमे उलझन में डालने वाली बहुत सी चीजें यहां उपलब्ध है। हमारे पास ईतने सारे ओप्शन है, ईतने सारे मार्ग, जानकारीयां, उदाहरण, ट्युटोरीयल उपलब्ध है कि हम समझ ही नही पाते के सही-गलत क्या है! वास्तव में सही-गलत की परिभाषा भी बदल गई है!
फिर बी कोई फर्क नहि पडना चाहीए अगर समय बदल गया है, क्यों की वेद-उपनिषद लिखनेवालों को यह भी सोचा ही होगा। समय भी क्या चीज़ है। ईश्वर न करे लेकिन अगर फिर से कीसी कारणवश यह सब समाप्त हो जाए....शुरुआत तो शुरु से ही होगी! वही...आदिमानवो से एन्ड्रोईड तक
में आपके प्रश्नो से भटक नही रहा....लेकिन में यही सोचता हुं। ग्रंथो में जो लिखा है, जीवन माया है, उसका उदेश्य सबका भला करना है, हमे सिर्फ पुण्य एवं ज्ञान प्राप्त करना चाहीए और आखरी प्रश्न का उत्तर है..सबसे आवश्यक ईन सब प्रश्नोको मनमें जगाए रखना है!