साधू गाँठ न बाँधई उदर समाता लेय।
आगे पाछे हरी खड़े जब माँगे तब देय॥
धीरे धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होए,
माली सींचे सौ घडे, ऋतू आये फल होए
मांगन मरण सामान है, मत मांगो कोई भीख,
मांगन से मरना भला, ये सतगुरु की सीख
ज्यों नैनन में पुतली, त्यों मालिक घर माँहि.
मूरख लोग न जानिए , बाहर ढूँढत जाहिं
कबीरा जब हम पैदा हुए, जग हँसे हम रोये,
ऐसी करनी कर चलो, हम हँसे जग रोये