Re: पंचतत्व सृष्टि बनी
पंचतत्व सृष्टि बनी
पृथ्वी (The Earth)
पृथ्वी का स्वामी ग्रह बुध है. इस तत्व का कारकत्व गंध है. इस तत्व के अधिकार क्षेत्र में हड्डी तथा माँस आता है. इस तत्व के अन्तर्गत आने वाली धातु वात, पित्त तथा कफ तीनों ही आती हैं. विद्वानों के मतानुसार पृथ्वी एक विशालकाय चुंबक है. इस चुंबक का दक्षिणी सिरा भौगोलिक उत्तरी ध्रुव में स्थित है. संभव है इसी कारण दिशा सूचक चुंबक का उत्तरी ध्रुव सदा उत्तर दिशा का ही संकेत देता है.
पृथ्वी के इसी चुंबकीय गुण का उपयोग वास्तु शास्त्र में अधिक होता है. इस चुंबक का उपयोग वास्तु में भूमि पर दबाव के लिए किया जाता है. वास्तु शास्त्र में दक्षिण दिशा में भार बढ़ाने पर अधिक बल दिया जाता है. हो सकता है इसी कारण दक्षिण दिशा की ओर सिर करके सोना स्वास्थ्य के लिए अच्छा माना गया है. यदि इस बात को धर्म से जोड़ा जाए तो कहा जाता है कि दक्षिण दिशा की ओर पैर करके ना सोएं क्योंकि दक्षिण में यमराज का वास होता है.
पृथ्वी अथवा भूमि के पाँच गुण शब्द, स्पर्श, रुप, स्वाद तथा आकार माने गए हैं. आकार तथा भार के साथ गंध भी पृथ्वी का विशिष्ट गुण है क्योंकि इसका संबंध नासिका की घ्राण शक्ति से है.
उपरोक्त विश्लेषण से यह निष्कर्ष निकलता है कि पंचतत्व मानव जीवन को अत्यधिक प्रभावित करते हैं. उनके बिना मानव तो क्या धरती पर रहने वाले किसी भी जीव के जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती है. इन पांच तत्वों का प्रभाव मानव के कर्म, प्रारब्ध, भाग्य तथा आचरण पर भी पूरा पड़ता है. जल यदि सुख प्रदान करता है तो संबंधों की ऊष्मा सुख को बढ़ाने का काम करती है और वायु शरीर में प्राण वायु बनकर घूमती है. आकाश महत्वाकांक्षा जगाता है तो पृथ्वी सहनशीलता व यथार्थ का पाठ सिखाती है. यदि देह में अग्नि तत्व बढ़ता है तो जल्की मात्रा बढ़ाने से उसे संतुलित किया जा सकता है. यदि वायु दोष है तो आकाश तत्व को बढ़ाने से यह संतुलित रहेगें.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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