छह-साढे छह के करीब हमने पहलगाम से एक गाडी ली और चन्दनबाडी पहुंच गये। चन्दनबाडी (या चन्दनवाडी) के रास्ते में एक जगह पडती है – बेताब घाटी। इसी घाटी में बेताब फिल्म की शूटिंग हुई थी। लगभग पूरी फिल्म यही पर शूट की गयी थी। ऊपर सडक से देखने पर बेताब घाटी बडी मस्त लग रही थी।
चन्दनबाडी से एक-डेढ किलोमीटर पहले ही गाडियों की लाइनें लगी थी। असल में जाम लगा था। दूसरों की देखा-देखी हमारा दल भी गाडी से उतरकर पैदल ही चन्दनबाडी की ओर चल पडा। चन्दनबाडी में भी यात्रियों और सामान की तलाशी ली जाती है। हमने अपना भारी और गैरजरूरी सामान तो गाडी में ही छोड दिया था। अब केवल बेहद जरूरी सामान ही था। यहां से अमरनाथ की पैदल यात्रा शुरू होती है। चन्दनबाडी पहलगाम से सोलह किलोमीटर दूर है। यहां कई भण्डारे भी लगे थे। अमरनाथ यात्रा का एक आकर्षण भण्डारे भी होते हैं। करोडों का खर्चा करते हैं ये भण्डारे वाले।
यहां पर एक कागज हाथ लगा जिस पर यात्रा मार्ग की सभी दूरियां लिखी थीं- पिस्सू घाटी 3 किलोमीटर, फिर जोजपाल, शेषनाग, महागुनस, पौष पत्री, पंचतरणी, संगम और गुफा। इसमें पहला स्टेप है चन्दनबाडी से पिस्सू घाटी का। यह मार्ग तीन किलोमीटर का है लेकिन सबसे मुश्किल भी। ऊपर देखने पर जब सिर गर्दन को छूने लगे तो एक चोटी दिखती है, उसे पिस्सू टॉप कहते हैं। ध्यान से देखने पर वहां भी रंग-बिरंगी चींटियां सी चलती दिखती हैं। कई यात्री जो घर से सोचकर आते हैं कि हम पूरी यात्रा पैदल ही करेंगे, इस चोटी को देखते ही ढेर हो जाते हैं। जरा सा चढते ही खच्चर वालों से मोलभाव करते दिखते हैं।
कहते हैं कि कभी इस स्थान पर देवताओं का और राक्षसों का युद्ध हुआ था। देवता जीत गये। उन्होंने राक्षसों को पीस-पीसकर उनका ढेर लगा दिया। उस ढेर को ही पिस्सू टॉप कहते हैं। पिस-पिसकर लगे ढेर को पिस्सू नाम दे दिया।
यह रास्ता बेहद चढाई भरा है। ऊपर से पानी भी आता रहता है। खच्चर वाले भी सबसे ज्यादा इसी पर मिलते हैं, क्योंकि आगे का रास्ता अपेक्षाकृत आसान है। पथरीला पहाड है तो जाडों में बरफ पडने से बना बनाया रास्ता अगले सीजन तक टूट जाता है। इसलिये इसे पक्का भी नहीं बनाया जा सका। पैदल यात्री शॉर्ट कट से चलना पसन्द करते हैं। उनकी वजह से कभी कभी पत्थर भी गिर जाते हैं। जो पत्थर एक बार गिर गया, वो नीचे तक लोगों को घायल करता चला जाता है। भगदड भी मच जाती है, जान भी चली जाती है।
हमारे दल में सबसे तेज शहंशाह चल रहा था, फिर मैं। ऐसे पहाड पर चढने का मेरा अपना तरीका है। धीरे-धीरे केवल अपने पैरों को देखते हुए चलता हूं, थकान नहीं होती। जब मैं ऊपर पहुंचा तो शहंशाह वही बैठा मिला। धीरे-धीरे दल के सभी सदस्य आ गये। घण्टे भर तक यहां आराम किया। दो-तीन भण्डारे भी लगे थे। नीचे से यहां तक के रास्ते में क्या हुआ, उसे चित्रों के माध्यम से देखिये:
चन्दनवाडी का विहंगम दृश्य
चन्दनवाडी के पास बरफ का पुल
शानदार झरना
पिस्सू घाटी की चढाई
पिस्सू टॉप पर
यह चित्र मैने गूगल अर्थ से लिया है। इसमें नीचे चन्दनवाडी और ऊपर पिस्सू टॉप दिखाया गया है। गूगल अर्थ ने यह चित्र जाडों में लिया होगा। तभी तो हर तरफ बरफ ही बरफ दिख रही है। अब यात्रा के समय यहां पहाडों पर बरफ नहीं थी।